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________________ ज्ञान को उच्च स्थान पर रखकर पढ़ना चाहिए, जिससे ज्ञान की आशातना न हो। पूर्व, ईशान एवं उत्तर दिशाएँ ज्ञानवर्धक होने से इन दिशाओं की तरफ मुख रखकर पढ़ना चाहिए एवं मुख दीवार की ओर रखकर पढ़ने से भी मन यहाँ वहाँ नहीं भटकता। ज्ञान के कितने आचार है एवं कौन कौन से है ? ज्ञान के 8 आचार है। (1) काले - जो समय पढ़ने के लिए बताया है उस समय में ही ज्ञान पढ़ना। (2) विनय - ज्ञान एवं ज्ञानी का विनय करके पढ़ना। यानि गुरु हो तो उन्हें वंदनादि करना एवं ज्ञान को पाँच खमासमणा देकर पढ़ना। (3) बहुमान - ज्ञान एवं ज्ञानी के प्रति हृदय में बहुमान अहोभाव रखना। (4) उपधान - उपधान तप करके पढ़ना। (5) अनिद्वव - जिनके पास अध्ययन किया हो उनका नाम छुपाकर दूसरों का नाम नहीं बताना। (6) व्यंजन - सूत्रों का शुद्ध उच्चारण करना यानि कि कम या अधिक अक्षर नहीं बोलना। (7) अर्थ - जिस सूत्र का जैसा अर्थ है वैसा ही समझना एवं कहना। (8) तदुभय - सूत्र शुद्ध एवं अर्थ सहित उपयोग पूर्वक बोलना। इन आठ आचारों का जो पालन करते हैं वे ज्ञानाचार के आराधक कहलाते हैं। इनमें जो भी दोष लगते हैं जैसे अकाल वेला में पढ़ना, ज्ञान की आशातना करना आदि अतिचार कहलाते हैं। यानि कि ये ही ज्ञान के आठ अतिचार भी होते हैं। ज्ञान की आराधना कैसे करना? * ज्ञान पांचम (कार्तिक सुद पांचम) के दिन उपवास करके 51 खमासमणा, 51 लोगस्स का काउस्सग्ग, 51 साथियाँ एवं ॐ ह्रीं नमो नाणस्स पद की 20 माला गिनना। हर महिने की सुद पंचमी के दिन तप के साथ यह क्रिया करनी चाहिए। इस प्रकार 5 वर्ष 5 महिने तक करने पर ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय होने के साथ ज्ञान की आराधना होती है। उपवास की तपस्या करने से कर्म की विशेष निर्जरा होती है, लेकिन यदि उपवास करने की शक्ति न हो तो आयंबिल या एकासणे से भी यह तप करके उपरोक्त बताई गई आराधना करनी चाहिए। * इसके अतिरिक्त भी ज्ञान की आराधना के लिए 51 न हो सके तो कम से कम 5 खमासमणा, 5 लोगस्स का काउस्सग्ग तथा पाँच साथिया एवं पाँच माला नित्य गिनें।
SR No.002439
Book TitleJainism Course Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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