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4. अनुप्रेक्षा शुद्ध विषय का चिंतन करना एवं चिंतन द्वारा अनुभव ज्ञान प्राप्त करना। इससे
सात कर्म शिथिल (दीले) बनते हैं।
5. धर्मकथा सिद्ध ज्ञान को अन्य लोगों को सिखाकर स्व-पर आत्मा को प्रतिबोध करना ।
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इससे शासन की प्रभावना होती है।
ज्ञान कब पढ़ना ?
प्रातः 4 बजे वातावरण शांत होता है एवं रात्रि विश्राम से मस्तिष्क भी स्फूर्तिवाला बन जाता है। इसलिए उस समय (ब्रह्म मुहूर्त ) में पढ़ने पर जल्दी याद होता है, एवं सुबह में पढ़ने से उसे भूलते भी नहीं है ।
ज्ञान कब नहीं पढ़ना ?
आवश्यक सूत्र जो गणधर भगवतों द्वारा रचित सूत्र है उन्हें कालवेला में नहीं पढ़ना चाहिए।
कालवेला कब-कब आती है ?
कालवेला दिन में चार बार आती है। सुबह सूर्योदय से 48 मिनिट पहले, दोपहर जब पुरिमुइद आता है, उसके 24 मिनिट पहले एवं 24 मिनिट बाद में (यानि लगभग 12 से 1 बजे तक) शाम को सूर्यास्त के बाद 48 मिनिट तक तथा मध्य रात्रि में 12 से 1 बजे तक कालवेला होती है।
विशेषः निम्न दिनों में ज्ञान की असज्झाय होती है
* चौदस का पक्खी प्रतिक्रमण करने के बाद से लेकर दूसरे दिन सूर्योदय तक ।
* चौमासी प्रतिक्रमण करने के बाद ढाई दिन तक यानि चौमासी चौदस के मध्याह्न से लेकर वद बीज के सूर्योदय तक ।
* आसोज एवं चैत्र मास की ओली में सुद पांचम के मध्याह्न से वद बीज के सूर्योदय तक यानि कि 12 दिन, तक। ये दिन अस्वाध्याय के दिन कहलाते हैं।
* इन दिनों में स्तवन, स्तुति, सज्झाय आदि याद कर सकते हैं।
ज्ञान पढ़ते समय कैसे बैठना ?
उभड़क आसन यानि दो घुटनों के बीच में दोनों हाथ डालकर बैठना चाहिए। इसे विनय मुद्रा या यथाजात मुद्रा भी कहते हैं। इस मुद्रा में अथवा पलाठी लगाकर बायें पैर के अंगूठे को दायें हाथ से पकड़ना और दायें पैर के अंगूठे को बायें हाथ से पकड़कर सीधे बैठकर गुनगुनाते हुए पढ़ना चाहिए। इससे नींद नहीं आती तथा मन भी स्थिर रहता है। साथ ही