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________________ दक्ष : हे भगवान ! तुमसे अच्छा तो किसी गँवार से शादी की होती तो दंग का खाना नहीं पर दंग की चाय तो पिलाती। (विधि को भी इस बात पर गुस्सा आ गया। पर संयोगवश उसे अपनी भाभी की हितशिक्षा याद आ गई और वह अपने गुस्से को कंट्रोल करके बोली-) विधि : ठीक ही कहा आपने। एक आप है जो मुझे सँभाल रहे हो कहीं और होती तो कब का घर से धक्के मारकर बाहर निकाल दिया होता। (विधि के इस अनपेक्षित जवाब को सुनकर दक्ष के आश्चर्य का कोई पार नहीं रहा। ) दक्ष : यह तुम बोल रही हो? विधि : हाँ और मैं मानती भी हूँ। (इतना कहते ही विधि रो पड़ी) दक्ष : अरे विधि ! तुम रो रही हो? विधि ! मैं नहीं तुम हो जो मुझ जैसे खराब स्वभाव वाले को संभाल रही हो। कोई और होती तो मुझसे तंग आकर कब की पियर चली गई होती। (इतना कहकर दक्ष भी रो पडा। फिर दक्ष और विधि दोनों ने अपने किए की माफी माँगी। और शाम को विधि ने मोक्षा को फोन किया-) विधि : थैक्स भाभी ! आपकी दी हुई सलाह से आज एक ही दिन में हमारे घर में परिवर्तन आ गया। हमारे जीवन में खुशियाँ ही खुशियाँ आ गई है। (इतना कहकर विधि ने मोक्षा को पूरी घटना बतायी। और आगे भी मोक्षा द्वारा दी गई हितशिक्षा का पालन करने का वादा किया। इतना ही नहीं उस दिन से विधि रोज अपने सास ससुर को मिलने जाती और उनकी तबियत उनकी जरुरतों का भी ध्यान रखती। विधि में आए इस परिवर्तन से उसके सास-ससुर भी बहुत खुश हो गये। इस प्रकार हँसते-खेलते विधि नौवें महिने में पहली डिलेवरी के लिए अपने पियर गई। दक्ष भी उसे अनुकूलतानुसार मिलने जाता। समय बीतने पर विधि ने एक लड़की को जन्म दिया। लड़की का नाम 'कृपा' रखा। दो महिने बाद विधि फिर से अपने ससुराल आ गई और इधर मोक्षा ने गर्भ धारण किया। नौ महिने बीतने पर उसने भी एक लड़की को जन्म दिया। उसका नाम 'मुक्ति' रखा। इस प्रकार समकित, मुक्ति और कृपा तीनों अपने माता-पिता से मिली जाने वाली परवरिश व संस्कारों से बड़े होने लगे। देखते ही देखते दक्ष और विधि के प्यार में पली कृपा चार साल की हो गई। एक दिन विधि और दक्ष कृपा को मेले में ले गए। मेले की भीड में कृपा कहीं खो गई। दक्ष और विधि उसे पूरे मेले में खोजने लगे। दो घंटे की खोज के बाद भी कृपा नहीं मिली। इससे विधि की हालत रो-रोकर जिन्दा लाश-सी हो गई। उसकी बिगड़ती हालत को देखकर दक्ष उसे समझाकर घर ले आया और अपने मम्मी-पापा को भी बुला दिया। सुधीर और शारदा विधि को सांत्वना देकर शांत करने की कोशिश करने लगे और दक्ष कृपा की खोज
SR No.002439
Book TitleJainism Course Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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