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________________ दो और बदले में तुम्हें प्रेम न मिले यह हो ही नहीं सकता। तुम एक बार मेरी सलाह पर चल कर तो देखो कि तुम्हारे घर में कितना परिवर्तन आता है। यदि मेरी सलाह से तुम्हारे जीवन में कोई परिवर्तन न आए तो मैं स्वयं तुम्हें तलाक दिलाने में मदद करूँगी। विधि : ठीक है भाभी ! मैं आपके कहे अनुसार करूँगी। लेकिन अब मैं घर जाऊँ कैसे? मैं तो दक्ष से झगड़ा करके आई हूँ। मोक्षा : (बीच में ही...) विधि तुम इसकी टेन्शन मत करो। मैंने दक्ष से बात कर लूँगी। (विधि और मोक्षा की सारी बातें सुशीला ने सुन ली। विधि के निकलते ही सुशीला कमरे में आई और....) सुशीला : (मोक्षा के सिर पर हाथ फेरते हुए ) बेटा ! पहले मैंने तुम्हें समझने में बहुत बड़ी गलती की। पर तुम तो मेरे घर की रोशनी हो जो अपने ही नहीं, पर औरों के घर को भी रोशन करती हो। ऐसी बहू ढूंढने पर भी नहीं मिलेगी। (मोक्षा ने दक्ष को फोन किया और कहा-) मोक्षा : दक्ष ! विधि को मैंने अच्छी तरह समझा दिया है पर साथ ही तुम्हारे सहयोग की भी जरुरत है। विधि की सारी बात सुनकर मुझे लगा 70% गलती उसकी है तो 30% गलत तुम भी तो हो। अतः सुधरने की आवश्यकता तुम्हें भी है। तुम दोनों के झगड़े का मुख्य कारण है तुम दोनों का अहं। दक्ष : मोक्षा दीदी ! मैं हर प्रकार से सुधरने के लिए तैयार हूँ। बस मुझे तो इतना ही चाहिए कि मेरे और विधि के संबंध अच्छे हों जाये। मैं विधि को वो सारी खुशियाँ देना चाहता हूँ जिसकी वो हकदार है। मोक्षा : दक्ष ! तुम्हारा अच्छा व्यवहार ही तुम्हें और विधि को खुश रख सकता है। तुम विधि को कहीं भी घूमने-फिरने ले जाओ। लेकिन दिन में एक बार उसे कह दो कि विधि तुम सचमुच बहुत अच्छी हो। मेरे घर को कितनी अच्छी तरह संभालती हो या फिर कभी उसे एक ग्लास पानी लाकर दो और यह कहो कि विधि घर का इतना काम करके तुम थक गई होगी। लो बैठो, पानी पी लो। मात्र तुम्हारे इन प्रेम भरे शब्दों से विधि को वह सारी खुशियाँ मिल जाएगी जो तुम उसे देना चाहते हो। दक्षः थैक्स दीदी ! मैं अब से इन सब बातों का ध्यान रखूगा। (और साथ ही मोक्षा ने दक्ष को विधि की गर्भावस्था में उसे किस प्रकार खुश रखना, उसकी हर इच्छा पूरी करना आदि के बारे में भी बताया। दक्ष भी समझदार था, इसलिए सारे मनमुटावों को भूलकर वह विधि को लेने आया और विधि भी खुशी-खुशी उसके साथ चली गयी। आठ-दस दिन तो यूँ ही हँसते-खेलते गुजर गये। एक दिन विधि ने चाय में भूल से डबल शक्कर डाल दी, और उस दिन ऑफिस से थककर आने के कारण दक्ष पहले से ही गुस्से में था। चाय का चूंट लेते ही।)
SR No.002439
Book TitleJainism Course Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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