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________________ दो दिमाग हो वहाँ टकराव होना, विचारभेद होना स्वाभाविक है। स्त्रियों में वह ताकत होती है कि वह अपने दिल से पुरुष के दिमाग को पिघला सकती है। पुरुषों के अहं के सामने वह चुप रहकर बाद में प्रेम से पुरुष के अहं व क्रोध को ठंडा कर सकती है। यह कला, कौशल्य स्त्रियों में सहज ही होता है। इसी कला के बल पर पुराने जमाने की स्त्रियाँ अपने पति के दिलों दिमाग पर राज करती थी। अतः तलाक जैसी कोई बात ही नहीं होती थी। __ परंतु वर्तमान में दिमाग के आधार पर अर्थात् अपने अहंकार के आधार पर जीने वाली स्त्रियों का दिमाग ही तलाक लेने के लिए प्रेरित करता है। दिल तो बेचारा तलाक के बाद भी तड़पता ही है। विधि! मैं तुमसे पूछती हूँ तुम सही-सही बताना कि अपने अहंकार के बल पर तुम तलाक लेने के लिए आतुर तो हो गई हो पर क्या तुम्हारा दिल इस फैसले से तैयार है? क्या तुम इस फैसले से खुश हो? (मोक्षा की बातें सुनकर विधि की आँखें भर आई-) विधि : भाभी ! सच कहूँ तो आपकी बात एकदम सही है, दिल तो सतत दक्ष से समाधान ही मांगता है। परंतु मेरे अपने ही अहं ने मेरे दिल को दबाकर रख दिया है। भले ही मैं तलाक लेने के लिए तैयार हूँ परंतु दक्ष की जरुरत, उसकी कमी मुझे हर स्थान पर महसूस हो रही है। कुछ समझ नहीं आ रहा है, अपने दिल का साथ दूं या अपने दिमाग का ? मोक्षा : विधि ! सीधी-सी बात है यदि तुम दिमाग का साथ देकर तलाक लेना मंजूर करती हो तो तलाक के बाद खुशियाँ तुम्हारे जीवन से हमेशा-हमेशा के लिए विदा ले लेगी। फिर क्या तुम समाज में वह स्थान प्राप्त कर पाओगी जो स्थान दक्ष के साथ रहकर तुमने प्राप्त किया है। सोचो विधि कि तुम रास्ते से गुजर रही हो और लोग यह कहे कि इस औरत का तलाक हुआ है। तो क्या तुम लोगों के वह ताने सुनने के लिए तैयार हो? तलाक के बाद तुम भले ही अपनी मेहनत से किसी अच्छे पद पर आसीन भी हो जाओगी परंतु किसी की पत्नी, किसी की बहू तथा किसी की माँ बनने का हक तुमसे सदा के लिए छीन जाएगा। यहाँ तक कि तुम तुम्हारे माँ बाप की बेटी भी नहीं रह पाओगी। सोचो विधि ! संघर्ष तो तुम्हें दोनों तरफ सहन करना ही है। अब फैसला तुम्हारे हाथ में है कि दिमाग के खातिर दक्ष से तलाक लेकर या तो समाज के ताने सुनो अथवा दिल की बात मानकर दक्ष के साथ होने वाले संघर्षों को प्रेम से सुलझाने की कोशिश करो। विधि : आपने तो मेरे दिल को झकझोर दिया भाभी ! समाज के सामने आपके द्वारा बताया गया भयंकर संघर्ष करने के लिए मैं कतई तैयार नहीं हूँ। भाभी ! अब मैं दक्ष के साथ तलाक नहीं समझौता करना चाहती हूँ। आप मुझे यह बताइए कि यदि आज से मैं कॉम्पिटीशन एवं अहं की भावना को छोड़ दूं तो क्या मेरे और दक्ष के बीच में होने वाले तनाव सदा के लिए बंद हो जायेंगे? क्या हम सुख से जी पाएँगे?
SR No.002439
Book TitleJainism Course Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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