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मोक्षा : नहीं विधि ! मैंने पहले ही बताया था कि कॉम्पिटीशन की भावना के साथ-साथ अहं और भूल देखने की दृष्टि झगड़े की छोटी चिनगारी को दावानल बनाने में पेट्रोल का काम करती है। विधि : वो कैसे भाभी? मोक्षा : विधि ! मैं सीधे पॉईंट पर आती हूँ। शादी के बाद पति-पत्नी एक दूसरे के बहुत उपयोगी बनते हैं, जैसे पत्नी को पति के घर को संभालना, घर में आने वाले मेहमानों का स्वागत करना, पति की हर इच्छा को पूर्ण करना। फिर भी मान लो यदि पत्नी से चाय फीकी बन जाए या ऐसी कोई भी छोटीबड़ी भूल हो जाए तो इन सब प्रसंगों की पति के दिमाग में टेपरीकोर्डिंग होती रहती है। फिर जब भी कोई भूल होती है तब टेप के प्ले का बटन दब जाता है और पहले से टेप शुरु हो जाती है। ऐसे में सहनशीलता की कमी के कारण पत्नी भी पति के भूलों की कैसेट शुरु कर देती है। . विधि : भाभी! आपने जो कहा वह मैंने साक्षात् अपने जीवन में अनुभव भी किया है। दक्ष ने मुझे हर प्रकार की खुशी दी पर उस दिन पिक्चर जाने की उनकी एक भूल, जो कि वास्तव में भूल नहीं थी। फिर भी मैं उसे आज तक गा रही हूँ। ऐसी तो कई बातें है भाभी! अब इस दोष दृष्टि को बदलने के लिए मैं क्या करूँ? मन को किस तरह समझाऊँ? भाभी सामने वाला भूल को तो उसे कहे बिना भी नहीं रहा जाता। उसके लिए क्या उपाय करूँ? मोक्षा : देखो ! आईना और केमेरा दोनों ही दृश्य को अपने में प्रतिबिंबित करते हैं। लेकिन फर्क इतना ही है कि आईना सामने से दृश्य हटते ही पूर्ववत् हो जाता है। लेकिन केमेरा एक बार जिस दृश्य को अपने रील में फीट कर देता है, फिर चाहे वह दृश्य वहाँ से दूर भी हट जाए तो भी वह फोटो में अपना अस्तित्व बनाए रखता है। ठीक उसी प्रकार अपना दिल भी दो प्रकार का होता है या तो आईने जैसा है या फिर केमरे जैसा। यदि दिल में प्रसंग खत्म होते ही भूल का दृश्य भी जाता हो जाए तो वह दिल आईने जैसा है, एवं जिस दिल में प्रसंग बीतने के बाद भी भूल का फोटो कायम रहे तो समझ लेना अपना दिल केमरे जैसा है। यदि दिल को केमरे के जैसा बनाया तो दूसरों की भूल तुम्हारे दिल में काँटे की तरह चुभती रहेगी, जो तुम्हें कभी शांति से जीने नहीं देगी। इसके विपरीत यदि तुम अपने दिल को आईने के जैसा बनाओगी तो समस्याएँ तुमसे सौ कदम दूर भागेगी। विधि : भाभी ! मैं अपने मन को आईना बनाने की पूरी कोशिश करूँगी, लेकिन फिर भी यदि मुझे दक्ष के दोष दिखने लगे तो क्या करना? मोक्षा : विधि ! सामने वाले के दोष दिखे तो तुरंत ही उसके गुणों को सामने लाना। ऐसा करते वक्त कभी मन न माने तो भी मन मार कर तुम्हें यह कार्य करना होगा। इस प्रकार गुण रुपी पुष्पों की सुवास