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* पाठशाला के ट्रस्टिओं को प्रतिदिन एक बार पाठशाला में आकर पाठशाला की गतिविधियों
का निरीक्षण करना चाहिए। ताकि कोई त्रुटि हो तो उसे शीघ्र सुधार सके। * ट्रस्टी महोदयों का जितना उल्लास व प्रोत्साहन होगा पाठशाला उतनी ही आगे बढ़ेगी। * ज्ञान की भक्ति का लाभ लेने का यह एक अनमोल अवसर है। * सभी विद्यार्थियों को एक समान राग में स्नात्रपूजा सिखायें तथा प्रति रविवार स्नात्र-पूजा
पढ़ाये एवं तीर्थस्थल पर जाएँ तो सामुहिक स्नात्र पूजा पढ़ाये। जिससे देखने वाले अन्य यात्रालुओं को भी अपने बच्चों को पाठशाला भेजने का मन हो। साथ ही बच्चों को
ढोलक, हार्मोनियम आदि संगीत कला सिखायें। * पाठशाला में सूत्र का उच्चारण सही तरीके से सिखायें। * एक साल पूर्ण होने पर वार्षिकोत्सव रखें। जिसमें पाठशाला के विद्यार्थियों के द्वारा सांस्कृतिक
कार्यक्रमों का आयोजन रखा जाये तथा बच्चों को विशिष्ट पुरस्कार दिया जाएँ। पर्युषण पर्व का अलग से नियम -कार्ड बनाएँ। जिसमें एकासणा-बियासणा, चप्पल त्याग,
अष्टप्रकारी पूजा, पौषध आदि विशेष नियम रखें। * पाठशाला में प्रतिदिन वन-डे-मैच गेम रखें। यानि किसी भी नियम का एक दिन पालन
करना। वह नियम पहले दिन ही बोर्ड पर लिख ले ताकि विद्यार्थी दूसरे दिन उस नियम का पालन कर सके। . यदि आपके गाँव में ही कोई पढ़ा-लिखा होशियार व्यक्ति हो। जिसका धार्मिक अध्ययन अच्छा हुआ हो और जो पाठशाला चला सके तो उसे ही वेतन देकर पाठशाला के लिए नियुक्त कर सकते हैं। * स्थानिक व्यक्ति यदि पाठशाला चलाएँ और वेतन न ले, तो भी ट्रस्टियों को वार्षिकोत्सव
के दिन उनका अच्छा बहुमान अवश्य करना चाहिए। * स्थानिक व्यक्ति पाठशाला चलाएँ तब ट्रस्टी ध्यान रखें कि सारी जिम्मेदारियाँ उन पर ही न
आ जाएँ। अर्थात् इनाम आदि की सुंदर व्यवस्था करके दे। * सामायिक, प्रतिक्रमण के जैसे ही पाठशाला में श्रुतदान करना (बच्चों को पढ़ाना) भी लाभ ही है।