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काम करो फिर ऑफिस जाओ। वैसे भी ऑफिस का टाईम तो आठ बजे का हैं। चार बजे उठेगी तो सारा काम हो जाएगा, वैसे भी ऑफिस में काम क्या करती है खाली जाकर कुर्सी पर बैठे रहना ।
समीर : डॉली ! तुमने सुन लिया होगा ।
(डॉली क्या करती, उस घर में उसका चलता ही कहाँ था । ज्यादा कुछ बोले तो समीर दो थप्पड़ लगाता। ऐसा कुछ न हो इसलिए डॉली ने चुपचाप शबाना की बात मान ली। अब डॉली सुबह चार बजे उठकर घर का सारा काम निपटाकर ऑफिस जाती और पूरे दिन थककर जब वह शाम को घर जाती तब भी उसके नसीब में सिर्फ काम ही था। रोज इसी तरह काम करके ऑफिस जाना और घर आकर फिर काम करना, यह डॉली का रोज का क्रम बन गया था।
वह तो मात्र शबाना और समीर की ऊँगलियों पर नाचने वाली कटपूतली बन गई थी। बस जैसा वे कहते वैसे वह नाचती और यदि थोडी भी बगावत करती तो उसे लातों और थप्पड़ों के अलावा और कुछ नहीं मिलता। उस दिन के बाद अब आए दिन डॉली को समीर और शबाना के ऑडर से नॉनवेज पकाना पड़ता। इतना ही नहीं जब कभी समीर की बहनें आती तो
जान बूझकर इन्हीं चीज़ों की मांग करती। डॉली काँपते हाथों और रोते दिल से सबकी इच्छाएँ पूरी करती । जिस दिन डॉली नॉनवेज पकाती उसके चार दिन तक वह खाना नहीं खा पाती। लेकिन आखिर क्या करती । गले में घंटी जो बाँधी थी। तो वह अब बजेगी ही....
"जो-जो भी गई भागकर, ठोकर खाती है, अपनी गलती पर रो-रो अश्क बहाती है एक ही किचन में मुर्गी संग साग पकाती है, हुइ भयानक भूल सोचकर अब पछताती है। "
बस ऐसा ही कुछ हो रहा था डॉली के साथ। ज्यादा काम होने के कारण एक दिन थककर डॉली अपने केबिन में टेबल पर सिर रखकर सो रही थी। उसी समय मि. जॉन किसी काम से डॉली के केबिन में आए। डॉली को सोया हुआ देख वे वापस अपने केबिन में आ गए और थोड़ी देर बाद अपने केबिन से डॉली को फोन करके उसे अपने केबिन में बुलाया । )
डॉली : आपने मुझे बुलाया सर ।
मि. जॉन : हाँ डॉली' ! क्या बात है। आज तुम ज्यादा ही थकी हुई हो। काम बहुत ज्यादा है क्या ? मैं तुम्हारे केबिन में आया था। तुम्हें सोया हुआ देख मैंने जगाना उचित नहीं समझा। क्या हुआ ? डॉली : कुछ नहीं सर ! वो ऐसे ही नींद आ गई। कोई काम था ?
मि. जॉन : हाँ आओ ! बैठो, मैं तुम्हें मि. शर्मा की सारी डिज़ाईन बता देता हूँ। ( डॉली वहाँ बैठ गई और मि. जॉन समझाने लगे। पर डॉली का ध्यान कही ओर ही था तब - ) मि. जॉन : डॉली ! मैंने अभी-अभी तुम्हें क्या बताया ?
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