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________________ कहती हो। वहाँ मेहनत करती हो या कुछ और यह तो अल्लाह ही जाने और यदि मैं तुम्हारे पैसों को जुएँ में हार जाऊँ या शराब में उडा दूँ तुम मेरा क्या कर सकती हो ? एक काम करते हैं तुम्हें पैसों की ज्यादा जरुरत हो तो तुम्हारे घर से मंगवा देता हूँ। फिर आराम से टेक्सी में घूमना। (इतना कहकर समीर मोबाईल निकालकर डॉली के घर पर कॉल करने लगा। गुस्से में आकर डॉली ने समीर का मोबाईल खींचकर फेंक दिया।) डॉली : खबरदार ! जो मेरे घर पर फोन लगाया तो, तुम्हें यदि.... । (डॉली आगे कुछ बोले उसके पहले ही समीर ने गुस्से में उसे दो थप्पड़ लगाई और अपना बेल्ट निकालकर डॉली को मारने लगा-) समीर : तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरा मोबाईल फेंकने की? बाहर पैर क्या रखें, जुबान कैंची की तरह चलने लगी है। कान खोलकर सुन लो। यहाँ रहना है तो कम पैसों में जीना सीख लो। महारानी बनकर जीने की अपनी आदत छोड़ दो और यदि यह आदत न छूटती हो तो अपने . पियर से पैसे मंगवा लो, समझी? (इतना कहकर डॉली को वही रोती छोड़कर समीर वहाँ से चला गया। बेचारी डॉली आज जानवरों की तरह पीटे जाने के बाद भी आँखों से आँसू बहाने के अलावा कुछ नहीं कर सकती थी। कहाँ वो महारानी जैसा जीवन जहाँ वह एक ग्लास पानी भी खुद नहीं भरती थी और कहाँ यह नौकरों जैसा जीवन जहाँ पूरे दिन मेहनत करने के बाद भी थप्पड़ ही खाने को मिलती थी। डॉली के सुनहरे सपनों पर फिर पानी फिर गया। उसका जीवन नरक से भी बत्तर बन गया था। सोचा था नौकरी करने के बाद सब कुछ अच्छा हो जाएगा। पर यदि किस्मत में रोना ही लिखा हो तो वह कितनी ही मेहनत क्यों न कर ले उसके होंठों पर हँसी कैसे आ सकती है? यूं देखा जाये तो इसमें किस्मत का भी क्या दोष ? अपनी किस्मत को गलत राह पर ले जाने वाली तो वो खुद ही थी। इतनी मार खाने के बाद डॉली को इतना दर्द होने लगा था कि वह वहाँ से उठ भी न पाई। बड़ी मुश्किल से अपने बॉस को फोन करके उसने एक दिन की छुट्टी माँग ली। पर डॉली के जीवन में इतने से भी शांति कहा थी। शाम को जैसे ही वह खाना खाने बैठी तब ...) शबाना : समीर ! मेरी सारी सहेलियाँ आज देखो कितने आराम से घूमती-फिरती हैं। आए दिन अपने घर आती जाती है। मुझे चार सप्ताह हो गए हैं इस घर से बाहर कदम भी नहीं रखा। क्या इस बुढ़ापे में भी मुझे काम करते-करते ही मरना पड़ेगा? महारानी ने जबसे ऑफिस जाना शुरु किया है तब से घर के काम को हाथ तक नहीं लगाया। ऑफिस जा रही है तो क्या हम पर एहसान कर रही है। कह दो इसे कि मुफ्त की रोटियाँ खाने को नहीं मिलेगी। पहले घर का EsD
SR No.002439
Book TitleJainism Course Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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