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* गरम पानी में ठण्डे पानी को मत मिलाईए। * फटाके कभी मत फोड़िए। * घास पर मत चलिए। * वनस्पति के पत्ते आदि मत तोड़िए। * गर्भपात न करें और न ही ऐसी हिंसक सलाह दें। ऐसी कुप्रवृत्तियों का दवाखाना भी मत चलाईए। * पर्वतिथि, पर्युषण, ओली आदि में लीलोतरी (हरी सब्जी, फ्रूट) का उपयोग न करें। * रसोई बनाने से पहले आटा-धान्य आदि को छलनी से छानकर देख लें फिर उपयोग में लें। * पर्वतिथि तथा 6 अट्ठाइयों के दिनों में अनाज मत पिसवाईयें। * खाली बर्तन आदि को उल्टे या आडे जमीन पर रखें। जिससे उनमें जीव जंतु गिरकर घबरा न जाए। * टेबल, पलंग आदि कोई सामान ज़मीन से घसीटते हुए न खींचे बल्कि उठाकर रखें। * अलमारी, बेग, डिब्बे आदि आधे खुले मत रखिए उन्हें अच्छी तरह से बंद करें। * चींटियाँ निकल आए तो उस स्थान के आस-पास राख या चूना छिटका दीजिए, चींटियाँ चली
जायेगी। चलते फिरते इस बात का ख्याल रखे कि कहीं कोई चींटी पैरों तले दबकर मर न जाए। * लाल रंग के बोर, मिर्ची आदि में उसी रंग के बहुत से जीव होने की संभावना है। इसलिए यतना पूर्वक
उपयोग में लीजिए। * रसोई घर में लाईट को चूल्हे के ऊपर मत रखिए। क्योंकि लाईट के आस-पास उड़ते जीव चूल्हे पर
तथा तपेली में गिरकर मर सकते हैं। * दही-छाछ को दो रात के बाद उपयोग में न लें। * बासी मावे की मिठाई का उपयोग न करें। ताजा मावा भी यदि पूर्ण रीति से पक्का न किया गया हो
तो वह भी दूसरे दिन बासी गिना जाता है। सफेद मावा एक रात के उपरांत बासी हो जाता है। * शहद-मक्खन आदि अभक्ष्य हैं। इनको खाने से पुष्कल विकलेन्द्रिय जीवों का भक्षण एवं हिंसा होती ___ है। इसलिए इनका त्याग करे।
* शरीर के खुल्ले भाग में यदि खुजली हो तो खुजलाने से पहले देखे कि कहीं कोई जीव तो नहीं बैठा ___हैं। पीठ आदि जहाँ पर दृष्टि न पहुँचे वहाँ रुमाल फिरा लें। * कपड़े धोने से पहले आगे-पीछे उल्टा करके बराबर निरीक्षण कर लीजिए।