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________________ जीवों की जयणा के सूत्र * ओडोमास की गंध वाला कपड़ा ढंक देने से डिब्बे में आई हुई चींटियाँ चली जाती हैं। * पानी में गिरी हुई चींटियाँ मरी हुई लगती है। लेकिन हल्के हाथ से पानी में से निकालकर उन्हें ऊनी कपड़े पर रखने से अथवा वह पानी गलणे से छानने से सारी चींटियाँ उस गलणे पर आ जाती है। एवं उस गलणे को निचोड़े बिना ऐसे ही सुकाने पर चींटियाँ 5-7 मिनिट में चलने लगती है। * नीम के पत्तों का धूप करने से मच्छर दूर भाग जाते हैं। * नीम का तेल शरीर पर लगाने से मच्छर नहीं काटते। * साबुन के पानी में भिगोये हुए कपड़ों की बाल्टी को ढूँककर रखें ताकि उसमें मक्खियाँ न गिरें। * घर में नमक के पानी से पोछा लगाने से मक्खियाँ नहीं होती हैं। * “देवीका महादेवीआ प्रोडक्टस् मुम्बई” की बनाई हुई दवाई घर में लगाने से कॉकरोच नहीं होते हैं। यदि कॉकरोच हैं तो चले जाते है पर मरते नहीं। यह दवा नीचे के पते पर उपलब्ध है - हुसैन मेनोर, नं 43, बमनजी पेटीट रोड़, पारसी जनरल हॉस्पिटल की गली, केम्पस कॉर्नर, मुम्बई-6. * पुस्तक, फर्निचर या दीवार पर उदेहि हो जाये तो खूब जयणा पूर्वक उन्हें लेकर वृक्ष की छाया में या वृक्ष की कोटर में रख दें। जिस जगह उदेहि की उत्पत्ति हुई है वहाँ पर केरोसिन का पोछा लगाने से उदेहि फिर से नहीं होगी। * साफ किए बिना ही अनाज को पिसवाने से अनेक निर्दोष जीव अनाज के साथ ही पिस जाते है। शाक-सब्जी सुधारे बिना पकाने से उसमें रही ईयल (लटे) पकने से मर जाती है। इसलिए अनाज को छानकर एवं बिनकर ही पिसवाना चाहिए। * वालपापड़ी, मटर, भींडी, शिमला मिर्च, करेला, पत्ता गोबी आदि में ईयल (लटे) की अधिक संभावना रहती है। इसलिए इन चीजों को सुधारते समय विशेष सावधानी रखनी चाहिए। * फूल गोबी में बेइन्द्रिय जीव अधिक सूक्ष्म होते हैं तथा छिद्रों में जीव भरे होते हैं। इसलिए इसका उपयोग न करें। कभी-कभी इसमें छोटे-छोटे साँप भी छिपे हुए रहते हैं। * भीडी को गोलाई में न सुधारें, उसे खड़ी (लंबाई)में ही सुधारे, सुधारते समय हल्के हाथों से चाकु से ___ चीरा लगाये फिर अंगुली से पोहली कर यतनापूर्वक देखें। * मेथी की भाजी में बहुत ही सूक्ष्म केसरी रंग की लटे होती है। छलनी से छनने से उनकी जयणा की जाती है। * गैस-स्टोव का उपयोग करने से पहले उसे पूंजणी से पूंज लीजिए।
SR No.002439
Book TitleJainism Course Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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