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गरवदन प्र. गुरुवंदन के कितने प्रकार है और कौन कौन से हैं? उ. गुरुवंदन के तीन प्रकार हैं
1. फेटा वंदन : मस्तक झुकाकर साधु-साध्वी को मत्थएण वंदामि कहना। 2. थोभ वंदन : दो खमासमण, इच्छकार, अब्भुट्टिओ पूर्वक साधु-साध्वीजी को वंदन करना। पुरुष । साधुओं को एवं बहनें साधु-साध्वीजी भगवंत को यह वंदन करें।
3. द्वादशावर्त वंदन : दो वांदणा पूर्वक पदवी-धर को यह वंदन किया जाता है। प्र. कौन से साधु वंदनीय है? उ. पाँच प्रकार के साधु वंदनीय है
1. आचार्य : गण के नायक एवं अर्थ की वाचना देने वाले। 2. उपाध्याय : गण के नायक होने लायक (युवराज के समान) एवं सूत्र की वाचना देने वाले। 3. प्रवर्तक : साधु भगवंतों को क्रिया में प्रवर्ताने वाले। 4. स्थविर : पतित परिणामी साधु को उपदेशादि से मार्ग में स्थिर करने वाले। 5. रत्नाधिक : ज्ञान, दर्शन, चारित्र में जो अधिक है।
गृहस्थ की अपेक्षा से सभी साधु रत्नाधिक है। इनको वंदन करने से कर्मों की निर्जरा होती है। प्र. गुरु महाराज को वंदन कब नहीं किया जाता हैं? उ. 1. जब गुरु भगवंत धर्म कार्य की चिंता में व्याकुल हो।
2. पराङ्गमुख (उल्टे) बैठे हो। 3. निद्रा आदि प्रमाद में हो।
4. आहार-विहार-निहार (स्थंडिल, मातरूं) कर रहे हो या करने की इच्छ वाले हो,तब वंदन नहीं करना चाहिए। प्र. गुरु भगवंत किस अवस्था में हो तब वंदन करना चाहिए? उ. 1. गुरु भगवंत जब प्रशांत (अव्यग्र) चित्त वाले हो।
2. अपने आसन पर व्यवस्थित बैठे हो। 3. उपशांत (क्रोधादि रहित) हो।