SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 162
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 4. वंदन करनेवाले को धर्मलाभ आदि कहने के लिए उद्यत हो, उस समय गुरु की आज्ञा लेकर वंदन करना चाहिए। प्र. वंदन कितनी बार एवं कैसे करना चाहिए? उ. दिन में तीन बार विधि से गुरुवंदन करना चाहिए एवं रात को गुरुवंदन विधि से वंदन न करके मात्र ___ चरण स्पर्श करके या हाथ जोड़कर त्रिकाल वंदन करना चाहिए। प्र. वंदन करने के निमित्त कौन-कौन से हैं? उ. वंदन करने के आठ निमित्त है 1. प्रतिक्रमण : प्रतिक्रमण आवश्यक के पूर्व जो वांदणे दिए जाते हैं। 2. स्वाध्याय : पढ़ाई या वाचना लेने से पूर्व वंदन किया जाता हैं। 3. काउस्सग्ग : उपधान आदि में एक तप में से दूसरे तप में प्रवेश करने के लिए जो वंदन किया जाता है। 4. अपराध : अपराध की क्षमापना के लिए जो वंदन किया जाता है। 5. प्राहुणा : नये आए हुए साधु को जो वंदन किया जाता है। 6. आलोचना : पापों की आलोचना करने हेतु जो वंदन किया जाता है। 7. संवर : पच्चक्खाण लेने के लिए जो वंदन किया जाता है। 8. उत्तमार्थ : अनशन तथा संलेखणा अंगीकार करने के लिए जो वंदन किया जाता है। प्र. गुरुवंदन करते समय कितने दोष टालने चाहिए? उसमें से कुछ दोष बताओं? उ. गुरुवंदन करते समय 32 दोष टालने चाहिए। वांदणा के 25 आवश्यक का बराबर ख्याल न रखकर __ जैसे-तैसे वंदन करना, गुरु के प्रति रोष आदि रखकर मात्र वंदन करना पड़े इसलिए करना, अनादर से करना यह सब दोष है। प्र. दोष रहित गुरुवंदन करने से क्या लाभ होता है? उ. दोष रहित गुरुवंदन करने से छः गुण की प्राप्ति होती है। (1) विनय (2) अहंकार का नाश (3) गुरु की पूजा (4) जिनाज्ञा का पालन (5) श्रुत धर्म की ___ आराधना (6) प्रचुर कर्म निर्जरा द्वारा मोक्ष की प्राप्ति होती है। प्र. गुरु के अभाव में उनकी स्थापना किस प्रकार करनी चाहिए? उ. स्थापना दो प्रकार की होती है। C1280
SR No.002439
Book TitleJainism Course Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy