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________________ प्र. तीन प्रकार के चैत्यवंदन बताओं? उ. 1. जघन्य - जिसमें एक नमुत्थुणं आता हो , वह जघन्य चैत्यवंदन है। 2. मध्यम - जिसमें दो नमुत्थुणं और एक स्तुति का जोड़ा आता है, वह मध्यम चैत्यवंदन है। 3. उत्कृष्ट - जिसमें पाँच नमुत्थुणं और दो स्तुति के जोड़े आते हैं, उसे उत्कृष्ट चैत्यवंदन (देववंदन) कहते हैं। प्र. पद एवं संपदा का अर्थ समझाइए? उ. पद : सूत्र में जो विभक्ति सहित शब्द होते हैं, उन्हें पद कहते हैं। प्रत्येक पद के बाद अल्पविराम होता हैं। संपदा : कुछ पद मिलकर अथवा अकेला पद जब पूर्ण अर्थ बताता है, उन पदों के समूह को संपदा कहते हैं। जैसे वाक्य पूरा होने पर पूर्ण विराम लिया जाता है वैसे ही संपदा पूर्ण होने पर पूर्ण विराम लिया जाता है। (सूत्र विभाग में सभी सूत्र अल्प विराम एवं पूर्ण विराम, पद-संपदा के अनुसार दिये गए हैं। उसका ध्यान रखकर बोलें।) प्र. चैत्यवंदन भाष्य के आधार पर पद, संपदा एवं अक्षर की गणना बताओं? 09 2. 28 43 | क्र. | सूत्र के नाम पदों की संख्या | संपदा की संख्या | कुल अक्षर | | 1. | नवकार 68 | इच्छामि खमासमणो | 3. | इरियावहियं (तस्स उत्तरी सहित) | 32 199 4. | नमुत्थुणं 33 297 5. | अरिहंत चेइयाणं (अन्नत्थ सहित) 229 6. |लोगस्स । 28 260 7. | पुक्खर-वर-दीवड्ढे 16 216 | सिद्धाणं-बुद्धाणं 198 | जावंति चेइयाई ___0 35 10. | जावंत के वि साहू 11.| जय वीयराय (प्रथम दो गाथा) । 0 79 20 9. / 38 0
SR No.002439
Book TitleJainism Course Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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