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________________ इसके बाद नमुत्थु से प्रभु स्तवना, जावंति से चैत्य एवं जावंत से साधु भगवंत आदि को वंदना करने के बाद प्रभु के गुणों को विविध स्तवनों से गाकर आत्मा तृप्ति का अनुभव करती है । एवं अंत में जय-वीयराय सूत्र में प्रभु से भव निस्तार के लिए विविध प्रार्थना एवं समाधि मरण की याचना एवं शरणागति से देववंदन की पूर्णाहुति होती है। प्र. देववंदन में प्रभु वंदना की क्या विशेषता है ? उ. देववंदन में प्रभु की चार निक्षेप से तथा रत्नत्रयी तत्त्वत्रयी, द्विविध तीर्थ आदि से वंदना होती है। प्र. चार निक्षेप से वंदना किस प्रकार होती है ? उ. 1. नाम निक्षेप - लोगस्स में 24 तीर्थंकर प्रभु की नाम से स्तुति होने से यह नाम निक्षेप से वंदना हुई । 2. स्थापना निक्षेप - जंकिंचि, लोगस्स एवं जावंति चेइयाइं इसमें प्रभु प्रतिमा को वंदना की गई है, यह स्थापना निक्षेप से वंदना हुई। 3. द्रव्य निक्षेप - 'जे अ अईया सिद्धा' से 'तिविहेण वंदामि' तक भूत एवं भावि के तीर्थंकर प्रभु की वंदना होने से यह द्रव्य निक्षेप से वंदना हुई। 4. भाव निक्षेप नमुत्थुणं सूत्र में प्रारंभ से नमो जिणाणं तक साक्षात् विचरने वाले तीर्थंकर प्रभु की 33 विशेषणों द्वारा स्तुति की गई है यह भाव निक्षेप से वंदना हुई। प्र. रत्नत्रयी से वंदना किस प्रकार होती हैं ? उ. दर्शन - लोगस्स, सिद्धाणं- बुद्धाणं द्वारा दर्शनपद से वंदना होती हैं। पुक्खर - वर - दीवड्ढे द्वारा ज्ञानपद से वंदना होती हैं। ज्ञान चारित्र - जावंत के वि साहू द्वारा चारित्रपद से वंदना होती हैं। इन सूत्रों में प्रभु के रत्नत्रयी गुणों की स्तवना की गई है। प्र. तत्त्वत्रयी से वंदना कैसे होती है ? उ. देव - नमुत्थुणं, लोगस्स में प्रभु को वंदना की जाती है। गुरु - जावंत के वि साहू में साधु को वंदना की जाती है। धर्म - पुक्खर - वर - दीवड्ढे में श्रुत धर्म एवं चारित्र धर्म की स्तुति की जाती है। प्र. द्विविध तीर्थ स्वरुप प्रभु को वंदना कौन-कौन से सूत्रों से होती हैं ? उ. जंगम तीर्थ : जावंत के वि साहू ( साधु-साध्वी जंगम तीर्थ कहलाते हैं ।) स्थावर तीर्थ - जंकिंचि, जावंति चेइयाई, अरिहंत चेइयाणं (प्रभु के मंदिर आदि स्थावर तीर्थ हैं।) 124
SR No.002439
Book TitleJainism Course Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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