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देववंदन प्र. देववंदन यानि क्या? उ. जिसमें पाँच दंडक, प्रणिधान सूत्र, चैत्यवंदन, स्तुति, स्तवन द्वारा विशिष्ट प्रकार से प्रभु को वंदना की
जाती है। उसे देववंदन कहते हैं। प्र. दंडक यानि क्या? वे कौन-कौन से हैं? उ. अति गहन अर्थ से युक्त एवं बार-बार उपयोग में आनेवाले मुख्य सूत्रों को शास्त्र में दंडक कहा गया
है, तथा जो दंड के जैसे सरलता से, यथोक्त मुद्रा से अस्खलित रुप से बोले जाते हैं। उन्हें दंडक कहते हैं। वे पाँच दंडक इस प्रकार है - 1 नमुत्थुणं, 2 अरिहंत चेझ्याणं, 3 लोगस्स, 4 पुक्खर-वर
दीवड्ढे, 5 सिद्धाणं-बुद्धाणं। प्र. प्रणिधान के तीन सूत्र कौन-कौन से हैं? उ. . जावंति चेइयाई, जावंत के वि साहू जय वीयराय। प्र. देववंदन के सूत्रों को किन भावों से बोलने चाहिए एवं उनके साथ चैत्यवंदन, स्तुति
(जोड़ा) एवं स्तवन का क्या संबंध है? उ. देववंदन के सूत्र प्राकृत भाषा में गणधर रचित एवं रहस्यों से भरपूर होते हैं। इसलिए सूत्रों की शुद्धि
एवं छंद को ध्यान में रखते हुए सूत्र बहुमान एवं अहोभाव पूर्वक बोलने चाहिए, जिससे विशिष्ट कर्म निर्जरा होती है। चैत्यवंदन-स्तुति-स्तवन हिन्दी गुजराती आदि लोकभाषा में होने से व्यक्ति राग में गाकर अपने हृदय को गद्गद् बना सकता है।
चैत्यवंदन में प्रभु का अल्पाक्षरी परिचय अथवा वंदना होती है एवं जं किंचि में तीनों लोक के सर्व तीर्थ की प्राकृत भाषा में वंदना की गई है। फिर नमुत्थुणं एवं अरिहंत चेइयाणं में प्रस्तुत जिन की प्राकृत में गुणगान कर प्रस्तुत भगवान की प्रथम थोय होती है। लोगस्स में चौबीस जिन की प्राकृत में नामस्तवना के बाद द्वितीय चौबीस जिन की थोय, पुक्खर वर दीवड्ढे में श्रुत ज्ञान की प्राकृत में महिमा बताकर तृतीय आगम की थोय बोलने से भावों में विशेष वृद्धि होती है। फिर अनंत सिद्ध भगवंत आदि को वंदन करता हुआ सिद्धाणं-बुद्धाणं सूत्र प्राकृत भाषा में बोला जाता है। (चार थुई वाले वैयावच्च सूत्र के बाद चौथी शासन देवी की स्तुति बोलते हैं।)
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