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शेष भाव
रमात्मा
के नव
व अंग पूज
सन के विशेष
हे प्रभु ! आपके च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान एवं निर्वाण कल्याणक से जगत के जीवों के मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय, योग रुपी आश्रव क्षय करते आपके चरण कमल की जय
हो.......
हे परमात्मा ! दीक्षा कल्याणक में कायोत्सर्ग द्वारा अनंत कर्मों की निर्जरा कराने वाले आपके जानु कमल की जय हो.... हे परमात्मा ! दीक्षा कल्याणक में दान की धारा एवं पंचमुष्टि लोच करने वाले आपके कर कमल की जय हो.... हे परमात्मा ! ध्यान में स्थिर होकर एकाकार होकर कषायों को दूर करने वाले आपके खंध कमल की जय हो.... हे परमात्मा ! अनंत आनंद स्वरुप जहाँ से बहती सिद्धरस धारा जगत के जीवों को गुण श्रेणी,क्षपक श्रेणी, केवलज्ञान एवं निर्वाण देती हैं । ऐसे आपके सहस्त्र कमल से शोभित शिर शिखा की जय हो. हे परमात्मा ! हे अनंत पुण्यनिधान ! हे महापुण्यनिधान ! हे अनंत पुण्यराशि ! हे प्रभु श्री
तीर्थंकर नामकर्म धारा से युक्त आज्ञाचक्र से सुशोभित आपके भाल तिलक की जय हो.... . हे परमात्मा | भव्य जीवों को भव सागर से पार उतारनेवाले सकल जीव राशि मात्र को
हितकारी, दावानल रुप कषाय को शांत करने के लिए पुष्करावर्त मेघ समान, पाप मल, कर्म मल को धोनेवाली ऐसी देशना देनेवाले आपके कंठ कमल की जय हो... हे परमात्मा ! अनाहत चक्र में राग-द्वेष का सर्वथा क्षय होता है, ऐसे आपके हृदय कमल की
जय हो.... • हे परमात्मा ! जहाँ से क्षपक श्रेणी की शुरुआत होती हैं ऐसे आपके नाभि कमल की जय हो...