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________________ जीव प्रति समय मोक्ष में जा सकते हैं। ज्यादा से ज्यादा 6 महिने का अंतर पड़ सकता हैं। अर्थात् 6 महिने में तो एक जीव अवश्य मोक्ष में जाता ही हैं। वन, नदी, मेरुपर्वत, समुद्र आदि ढ़ाई द्वीप के प्रत्येक भाग से अनंत आत्माएँ मोक्ष में गई है। ढाई द्वीप में ऐसा कोई स्थान नहीं है, जहाँ से अनंत जीव मोक्ष में न गये हो। प्र. : लवण आदि समुद्र, वन एवं अकर्मभूमि एवं केवलज्ञान विच्छेद होने के बाद कर्मभूमि में से जीव मोक्ष में कैसे जाते हैं? उ.: पूर्वभव में द्वेष आदि के कारण कोई देव किसी मनुष्य का या केवली का संहरण कर लवण समुद्र ____ में या वन आदि में छोड़ दे तो वहाँ से भी केवलज्ञान प्राप्त करके जीव मोक्ष में जा सकते है। जब कि ऐसा तो कभी-कभी बनता है। लेकिन अनंत काल में अनंत बार ऐसा बन जाता है। इसलिए ऐक-ऐक स्थान से अनंत जीव मोक्ष में गये हैं। प्र. शत्रुजय के एक-एक कंकर में अनंत जीव मोक्ष में गये है, ऐसा कहा जाता है और आप तो सर्व स्थान से अनंत जीव मोक्ष में गये हैं, ऐसा कहते हो तो इसका तात्पर्य क्या समझना? उ.: सर्व स्थान से अनंत जीव मोक्ष में गए ही है, फिर भी शत्रुजय पर्वत का ऐसा महात्म्य है कि अन्य स्थलों में से जितने मोक्ष में गये हैं उससे भी अनेक गुणा अधिक शत्रुजय से मोक्ष में गये हैं। 'प्र. निरंतर कितने समय तक कितने जीव एक साथ मोक्ष में जा सकते हैं? उ.: एक साथ 1 से 32 तक की संख्या में से यदि जीव मोक्ष में जाएँ तो निरंतर 8 समय तक जीव मोक्ष में जा सकते है। ___ उदा.: जैसे पूरे अढ़ी द्वीप में से कहीं से भी कुल मिलाकर मानो 15 जीव मोक्ष में गये तो दूसरे समय में 22 तीसरे समय में 5, चौथे समय में 32, पांचवें समय में 20, छठे समय में 27, आठवें समय में 1 जीव मोक्ष गया। इस प्रकार 1 से 32 की संख्या वाला जीव निरंतर 8 समय तक मोक्ष में जा सकता है। उसके बाद 1 समय का अवश्य अंतर पड़ेगा ही यानि कि नौवें समय में कोई भी जीव मोक्ष में जायेगा ही नहीं। लेकिन 10 वें समय में फिर से मोक्ष में जा सकता हैं। इसी प्रकार 33 से 48 की संख्या वाले जीव निरंतर से 7 समय तक मोक्ष में जा सकते हैं। उसके बाद अवश्य ही एक समय का अंतराल पड़ता है वैसे ही 6 समय आदि में कितने जीव निरंतर मोक्ष में जा सकते हैं वह निम्न तालिका से जाना जा सकता हैं
SR No.002439
Book TitleJainism Course Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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