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की उत्कृष्ट से 170 तीर्थंकर एक चौवीसी में 24 तीर्थंकर, 12 चक्रवर्ती, 9 बलदेव, 9 वासुदेव एवं 9 प्रतिवासुदेव ये 63 शलाका पुरुष होते हैं तथा । नारद एवं 11 रुद्र भी होते हैं। चक्रवर्ती के जीतने योग्य 6 खण्ड वाली विजय कुल 170 है वे इस प्रकार है। जम्बूद्वीप के महाविदेह की 32 विजय, 1 भरत एवं 1 ऐरावत की
34 विजय पूर्व धातकी खण्ड के महाविदेह की 32 विजय, 1 भरत एवं 1 ऐरावत की पश्चिम धातकी खण्ड के महाविदेह की 32 विजय, 1 भरत एवं 1 ऐरावत की 34 विजय पूर्व पुष्करार्ध के महाविदेह की 32 विजय, 1 भरत एवं 1 ऐरावत की 34 विजय पश्चिम पुष्करार्ध के महाविदेह की 32 विजय, 1 भरत एवं 1 ऐरावत की 34 विजय
कुल 170 विजय एक विजय में एक साथ दो तीर्थंकर नहीं हो सकते। इसलिए जब इन सर्व विजयों में 1-1 तीर्थंकर होते हैं, तब उत्कृष्ट से 170 तीर्थंकर एक साथ विचरते मिलते हैं। उस समय उत्कृष्ट से केवली भगवंत 9 करोड़ एवं 90 अरब साधु भगवंत होते हैं। वर्तमान में 5 महाविदेह की 4-4 विजयों में कुल 5x4=20 तीर्थंकर परमात्मा जघन्य से विचर रहे हैं तथा केवलज्ञानी 2 करोड़ एवं 20 अरब साधु भगवंत विचर रहे हैं।
चक्रवर्ती एवं वासुदेव एक साथ एक क्षेत्र में नहीं हो सकते। अतः जब चक्रवर्ती उत्कृष्ट से 150 होते हैं, तब वासुदेव जघन्य से 20 होते हैं एवं जब वासुदेव उत्कृष्ट से 150 होते हैं। तब चक्रवर्ती जघन्य से 20 होते हैं। महाविदेह में हमेशा चौथा आरा होने से जिस विजय में तीर्थंकर नहीं है वहाँ से भी मोक्ष गमन चालु है।
च मोक्ष गमन की प्रक्रिया ___45 लाख योजन प्रमाण मनुष्य लोक के किसी भी स्थान से जीव मोक्ष में जा सकता है। जहाँ से जीव मुक्त बनता है उसी आकाश श्रेणी से लोकाग्र भाग में जाकर जीव अनंत काल तक सिद्धशीला के ऊपर रहता है। यह सिद्धशीला ठीक मनुष्य क्षेत्र के उपर लोकाग्र से 1 योजन दूरी पर है। “इषद्प्राग्भार” नाम की यह सिद्धशीला 45 लाख योजन वाली एवं अर्ध मोसंबी के आकार जैसी गोल है। बीच में आठ योजन मोटाई वाली एवं घटती-घटती मक्खी के पंख जितनी किनारी पर पतली है।
उत्कृष्ट से 500 धनुष के एवं जघन्य से 2 हाथ की काया वाले जीव मोक्ष में जा सकते हैं। अपने शरीर में 1/3 भाग पोलान वाला स्थान हैं। मोक्ष में जाते समय यह स्थान आत्म प्रदेशों से भर जाता