SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 140
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ | द्वीप योजन समुद्र योजन पानी का स्वाद | 4 वारुणीवर 64 लाख वारुणीवर 128 लाख दारु जैसा इलायची आदि सुगंधी द्रव्य से मिश्रित 5 क्षीरवर 256 लाख क्षीरवर । |512 लाख । | दूध जैसा इलायची आदि सुगंधी द्रव्य से मिश्रित | 6 घृतवर | 1024 लाख घृतवर 2048 लाख | घी जैसा इलायची आदि सुगंधी द्रव्य से मिश्रित | 7 इक्षुवर 4096 लाख | इक्षुवर 9192 लाख | इक्षु (सेलडी) के रस समान इलायची आदि सुगंधी द्रव्य से मिश्रित 8 नंदीश्वर 16384 लाख नंदीश्वर ।। पूर्व-पूर्व | इक्षु (सेलडी) के रस समान इलायची आदि सुगंधी द्रव्य से मिश्रित | 9 अरुण (पूर्व-पूर्व | अरुण ।। द्वीप से | इक्षु (सेलडी) के रस समान इलायची.आदि सुगंधी द्रव्य से मिश्रित । | 10 कुंडल | समुद्र से | कुंडल || द्वीगुण | इक्षु (सेलडी) के रस समान इलायची आदि सुगंधी द्रव्य से मिश्रित | | 11 रुचक ।। द्विगुण | रुचक || करना | इक्षु (सेलडी) के रस समान इलायची आदि सुगंधी द्रव्य से मिश्रित कामली काल : जंबूद्वीप से असंख्य द्वीप-समुद्र उल्लंघन करने के बाद अरुणवर समुद्र आता है। इसके बीच में से एकदम काला एवं पानी के जीवों से बना हुआ तमस्काय निकलता है। जो वहाँ से निकलकर 3 9 राज ऊँचे ब्रह्म देवलोक तक पहुँचता है। वह जहाँ से जाता है वे सब स्थान काले बन . जाते हैं। भय के अवसर में देवता इन स्थानों में छिप जाते है। ब्रह्म देवलोक से फिर नीचे गिरता हुआ यह तमस्काय अपने भरतक्षेत्र आदि स्थानों में भी आता है। ये अप्काय के जीव हैं। दिन में सूर्य के ताप से सूक जाने के कारण ये जीव अपने तक नहीं पहुँचते लेकिन संध्या समय एवं रात्रि में इन जीवों की रक्षा के लिए कामली ओढ़नी चाहिए। इस प्रकार दुनिया में जितने भी शुभ नाम है उन सभी नाम वाले असंख्य द्वीप समुद्र है। अंतिम पाँच द्वीप समुद्र क्रमशः देव, नाग, यक्ष, भूत एवं स्वयंभूरमण नाम वाले हैं। इन पाँच नाम वाले द्वीप-समुद्र 1-1 ही है। अंतिम समुद्र दोनों तरफ लगभग पॉव-पॉव राज कुल राजलोक में व्याप्त एवं सादे पानी के स्वाद वाला है। अन्य सभी समुद्रों के पानी का स्वाद सुगंधी द्रव्यों से मिश्रित इक्षुरस के समान है। इनमें से लवण समुद्र में उत्कृष्ट से 500 योजन वाले, कालोदधि में 700 योजन वाले एवं स्वयंभूरमण समुद्र में 1000 योजन वाले मत्स्य होते हैं। इन समुद्रों में मत्स्य बहुत होते है। अन्य समुद्रों में अलग-अलग माप वाले एवं कम मत्स्य हैं। ये मछलियाँ नली एवं चूड़ी इन दो सिवाय सभी आकार वाली होती है। अरिहंत के आकार वाले मत्स्य को देखकर कई मत्स्य को जाति-स्मरण ज्ञान भी हो जाता है। ढाई द्वीप के बाहर कुछ पक्षी ऐसे है जो उड़ते हैं या बैठते हैं तब उनके पंख खुले ही रहते हैं और कुछ पक्षी के पंख उड़ते या बैठते वक्त बंद ही रहते हैं। ऊपर वैमानिक देवों के विमान देव द्वीप के ऊपर से शुरु होकर स्वयंभूरमण समुद्र के ऊपर तक रहे हुए हैं।
SR No.002439
Book TitleJainism Course Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy