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सूर्य-चन्द्र की पंक्ति : ढाई द्वीप में 132 सूर्य और 132 चन्द्र आमने-सामने 66-66 की पंक्ति में चलते हैं। लवण समुद्र में चलने वाले चन्द्र-सूर्य उदक स्फटिक रत्न से बने हुए हैं। जिससे 16,000 योजन ऊँची शिखा के बीच में से जब ये चलते हैं तब इनके प्रभाव से पानी इनको चलने लिए मार्ग देता है एवं इनकी कांति आदि को क्षति नहीं पहुँचती ।
ढ़ाई द्वीप
66 सूर्य
66 चंद
66 चंद्र
66 सूर्य
कालोदधि समुद्र : यह समुद्र धातकी खण्ड के बाद आता हैं। इस समुद्र का पानी काला होने से इसका नाम कालोदधि है। धातकी खण्ड की जगति (सीमा) से 12,000 योजन पूर्व-पश्चिम दिशा में जाने पर गौतम द्वीप के समान यहाँ के अधिष्ठायक काल- महाकाल देव के स्थान है। कालोदधि की जगति से 12,000 योजन अंदर जाने पर कालोदधि के 42 सूर्य तथा 42 चन्द्र के द्वीप है। इस समुद्र में पाताल कलश आदि कुछ नहीं है। इस समुद्र के पानी का स्वाद बारिश के पानी जैसा होता है।
मनुष्य लोक के बाहर असंख्य द्वीप - समुद्र
मात्र मनुष्य लोक में ही मनुष्यों का जन्म-मरण होता है। उसके बाहर रुचक द्वीप तक चारण मुनि तथा विद्याधरों का गमनागमन होता है, परंतु वहाँ किसी की मृत्यु नहीं होती । व्यवहार - सिद्ध काल, अग्नि, चन्द्र-सूर्यादि का परिभ्रमण, उत्पात सूचक गांधर्व नगर आदि पदार्थ ढाई द्वीप के बाहर नहीं होते।
पुष्करवर द्वीप के बाद सादे पानी वाला तथा 32 लाख योजन विस्तार वाला पुष्करवर समुद्र है। उसके बाद के द्वीप समुद्र इस प्रकार है।
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