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________________ तिच्छालोक में द्वीप-समुद्र की लवण समुद्र जंबूद्वीप के चारों तरफ 2 लाख योजन का लवण समुद्र है। इसके पानी का स्वाद नमक के समान खारा होने से इसका नाम लवण समुद्र है। इसके अंदर मुख्य चार पाताल कलश है। ये एक लाख योजन गहरे एवं बीच में 1 लाख योजन विस्तृत हैं। इन कलशों के तीन भाग है। उसके नीचे के प्रथम भाग में हवा है, दूसरे मध्य भाग में हवा-पानी मिश्र एवं तीसरे ऊपर के भाग में सिर्फ पानी है। एक दिन में दो बार पहले-दूसरे भाग की हवा श्वास के समान ऊँची-नीची होती है। इससे पूरा समुद्र क्षोभायमान होता है तथा समुद्र में ज्वार-भाटा आता है। __ लवण समुद्र के मध्य भाग में 10,000 योजन चौड़ी एवं 16,000 योजन ऊँची शिखा है। हवा के खलभलोट के कारण यह शिखा 2 गाउ ऊँची जाती है। इससे अधिक ऊँची जाने से उसे 60,000 देव रोकते हैं। इस खलभलाट के कारण इस पानी को जम्बूद्वीप में आने से 42,000 देव रोकते हैं एवं 72,000 देव धातकी खण्ड में पानी को जाने से रोकते हैं। 4 पाताल कलशों के पास में 4 वेलंधर पर्वत है एवं विदिशा में 4 अनुवेलंधर पर्वत है। इन आठों पर्वतों पर 1-1 शाश्वत चैत्य है। जम्बूद्वीप से पश्चिम में 12 हज़ार योजन समुद्र में जाने पर गौतम द्वीप है। वहाँ लवण समुद्र के अधिष्ठायक सुस्थित देव रहते हैं। गौतम द्वीप के दोनों तरफ 2-2 सूर्य द्वीप है। इसी प्रकार पूर्व में चार चन्द्र द्वीप हैं। शिखा के दूसरी तरफ 8-8 सूर्य एवं चंद्र द्वीप हैं। अन्य समुद्रों में पाताल कलश नहीं होने के कारण ज्वार भाटा नहीं आता। जम्बूद्वीप एवं धातकी खण्ड से लवण समुद्र की शिखा तरफ 95,000 योजन जाने पर गहराई बढ़ती बढ़ती 1000 योजन एवं जल की वृद्धि 700 योजन होती है। उसके बाद 10,000 योजन की चौड़ी शिखा मूल से 17,000 एवं समभूतला से 16,000 योजन ऊँची है। धातकी खण्ड तथा अर्धपुष्करवर द्वीप धातकी खण्ड एवं अर्धपुष्करवर द्वीप वलयाकार में है तथा दक्षिण एवं उत्तर में रहे हुए दो-दो इषुकार (बाण के आकार वाले) पर्वत से पूर्व-पश्चिम दो भागों में विभक्त है। पुष्करवर द्वीप की यह विशेषता है कि वह 16 लाख योजन का होते हुए भी उसके ठीक मध्य भाग में रहे हुए मानुषोत्तर पर्वत से यह द्वीप दो भागों में बँट जाता है। मानुषोत्तर पर्वत से आगे का आधा भाग मनुष्य क्षेत्र गिना जाता 105
SR No.002439
Book TitleJainism Course Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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