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________________ है। अतः पुष्करवर द्वीप के पूर्व-पश्चिम 8-8 लाख योजन तक ही मनुष्य क्षेत्र है। बाकि क्षेत्रादि में मनुष्यों का जन्म-मरण आदि नहीं होता। दो धातकी खण्ड एवं दो पुष्करवर द्वीप इन चारों का वर्णन जम्बूद्वीप के समान ही समझें परंतु अंतर इतना है कि ये द्वीप वलयाकार एवं जम्बूद्वीप की अपेक्षा से बड़े-बड़े होने से इनके वासक्षेत्र एवं पर्वत आदि सर्व वस्तुएँ क्रमशः बड़ी-बड़ी एवं आकार में भी थोड़े फर्क वाली है। ढाई द्वीप की कर्म तथा अकर्म भूमियाँ जम्बूद्वीप की किसी भी वस्तु को 5 से गुना करने पर ढाई द्वीप की वस्तु प्राप्त होती है। जम्बूद्वीप में भात, ऐरावत एवं महाविदेह ये तीन कर्मभूमि है तो ढाई द्वीप में कुल 5 भरत, 5 ऐरावत एवं 5 पहाविदेह क्षेत्र होने से 3X5=कुल 15 कर्म भूमियाँ हैं। जम्बूद्वीप में 6 अकर्म भूमि होने से ढाईद्वीप में कुल 6X5=30 अकर्म भूमियाँ है तथा 5 मेरु पर्वत हैं। । मनुष्य लोक तथा सूर्य-चन्द्र पंक्ति ति लोक के सबसे बीच में थाली के आकार का जम्बूद्वीप है। परंतु उसके बाद सारे द्वीपसमुद्र वलयाकार (चूड़ी का आकार) होने से पूर्व-पश्चिम दो भागों में विभक्त है। कुल ढ़ाई-द्वीप — प्रमाण अर्थात् 45 लाख योजन विस्तृत ऐसा मनुष्य लोक है। इस ढ़ाई द्वीप में कुल 132 सूर्य एवं 132 चन्द्र है। द्वीप-समुद्र | सूर्य | चन्द्र | द्वीप-समुद्र का माप . | जम्बूद्वीप | 2 | 1 लाख योजन | पूर्व लवण समुद्र ___2 | 2 लाख योजन | पश्चिम लवण समुद्र 2 | 2 लाख योजन पूर्व धातकी खण्ड 6 | 4 लाख योजन पश्चिम धातकी खण्ड | 6 | 6 | 4 लाख योजन पूर्व कालोदधि समुद्र 21 | 8 लाख योजन पश्चिम कालोदधि समुद्र 8 लाख योजन | पूर्व अर्ध पुष्करवर द्वीप 36 36 | 8 लाख योजन | पश्चिम अर्ध पुष्करवर द्वीप ___36 | 8 लाख योजन | 21 द्वीप-समुद्र रुप मनुष्य क्षेत्र में कुल | 132 | 132 | 45 लाख योजन 2 । . 2 2 6 21 21 21 36
SR No.002439
Book TitleJainism Course Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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