________________
और सामने छ: व्यक्ति थे। अतः वह अकेला कुछ भी करने की स्थिति में नहीं था। उन्होंने मिलकर अर्जुनमाली को स्तंभ से बाँध दिया तथा उसी के सामने बंधुमति के साथ कुचेष्टा करने लगे। यह देख अर्जुनमाली क्रोध में आकर यक्ष को धिक्कार ने लगा कि “सचमुच तुम पत्थर के बने हो। अन्यथा अपने ही स्थान पर हो रहे इस अनर्थ को कैसे देख सकते हो ? आज तक आपकी इतनी भक्ति की उसका यह फल ?" संयोगवश उस देव ने अवधिज्ञान से सारी स्थिति जान ली। यक्ष ने क्रोधित बने अर्जुनमाली के शरीर में प्रवेश किया। यक्ष के बल से अर्जुनमाली ने सारे बंधन तोड़ दिये और यक्ष की मूर्ति के हाथ से मुद्गर लेकर क्रोधावेश में आकर उन छःओं को और साथ ही बंधुमति को मार दिया। उसका क्रोध इस हद तक बढ़ गया कि उसने उसी वक्त प्रतिज्ञा ली कि “जब तक मैं एक दिन में छः पुरुष एवं एक स्त्री को मौत के घाट नहीं उतारूँगा तब तक चैन से नहीं बैठेंगा।” अब वह नित्य ही सात लोगों को मारने लगा। इससे सारी नगरी में हाहाकार मच गया। नगरवासी जब तक सात लोगों के मर जाने की खबर नहीं सुनते तब तक घर से बाहर नहीं निकलते थे। यह क्रम छ:महिने तक चलता रहा।
एक दिन प्रभु महावीर स्वामी राजगृही उद्यान में पधारें। राजगृही नगर के सम्यक्त्वी श्रावक श्रेष्ठी सुदर्शन को प्रभु दर्शन करने की तीव्र इच्छा हुई। सभी के मना करने के बावजूद भी वे निडर बनकर परमात्मा के दर्शनार्थ निकल पड़े। रास्ते में अपने शिकार को देखते ही अर्जुनमाली क्रोध से लाल बनकर उन्हें मारने के लिए दौड़ा। उसे अपनी ओर आते देख सेठ तुरंत काउस्सग्ग ध्यान में खड़े हो गए तथा जहाँ तक उपसर्ग न टले वहाँ तक चारों आहार का त्याग कर दिया। अर्जुनमाली उनके पास आया। लेकिन श्रमणोपासक, श्रेष्ठिवर्य सुदर्शन के काउस्सग्ग ध्यान के प्रभाव से हिंसक यक्ष अर्जुनमाली के देह को छोड़कर भाग गया।
अर्जुनमाली बेहोश होकर गिर पड़ा। कुछ देर बाद उसे होश आया। वह सुदर्शन श्रेष्ठी के चरणों में गिर पड़ा। उसने श्रेष्ठी से पूछा - “आप कौन हो?। और कहाँ जा रहे हो?" तब सेठ ने जवाब दिया। “मैं प्रभु वीर का श्रावक हूँ। समीप के उद्यान में प्रभु पधारे है। मैं उनके दर्शन के लिए जा रहा हूँ। तुम भी मेरे साथ चलो तथा प्रभु दर्शन से अपनी आत्मा को पावन बनाओ।” अर्जुनमाली को अपने किए गए कुकार्यों का पश्चाताप होने लगा। वह प्रभु के दर्शनार्थ गया। वहाँ प्रभु की देशना सुनकर उसका अंतःकरण वैराग्य से वासित हो गया। उसने परमात्मा के चरणों में संयम अंगीकार कर उसी समय अपने जीवन में किए गए घोरातिघोर पापों को प्रभु के समक्ष प्रगट किए।अपने कुकार्यों के प्रायश्चित के रुप में जीवन पर्यंत छट्ठ के पारणे छ? करने की प्रतिज्ञा ली।