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योग्य अन्य साधु-साध्वीजी को भी प्रेरणा दी। इससे रुक्मि साध्वीजी ने भी अनशन करने का विचार किया।
अनशन करने के पूर्व आचार्यश्री ने फिर से एक बार आलोचना करने को कहा। अनशन करने वाले सभी साधु-साध्वीजी आचार्य भगवंत की पावन निश्रा में सूक्ष्मता से स्वजीवन की आलोचना करने लगे। रुक्मि साध्वीजी भी संयम जीवन में लगे हुए सूक्ष्म से सूक्ष्म दोषों को याद कर उनकी आलोचना करने लगी। “एक बार बोलते वक्त मुँहपत्ति का उपयोग नहीं रहा। दस-बारह कदम ईर्यासमिति के पालन में चुक गई। बगीचे में रहे हुए मोहक फूल पर दृष्टि स्थिर हो गई। प्रतिक्रमण में एक बार एक काउस्सग्ग बैठे-बैठे किया।" इस प्रकार की अनेक प्रकार की आलोचनाएँ की। परंतु अपने राग-विकार वाली उस दृष्टि की आलोचना नहीं ली। आचार्यश्री ने बार-बार “और कुछ, और कुछ” ऐसा पूछकर उन्हें याद दिलाने की कोशिश की, परंतु सब प्रयास निष्फल गये।
बार-बार आचार्य भगवंत के कहने के बाद भी जब रुक्मि साध्वीजी पाप स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हुई। तब अवधिज्ञानी महर्षि करुणार्द्र हृदय से आचार्यश्री ने आगे कहा “वत्से ! याद करो जब तुम राजा थे तब हम दोनों की नज़र मिली थी। उस समय तुम्हारे मन में विकार भाव पैदा हुआ था।” यद्यपि उस वक्त रुक्मि साध्वी को सारी जानकारी थी ही। परंतु ब्रह्मचर्य पालन करने में मैने एक बार मानसिक भूल की थी। यह बात प्रगट करने के लिए उनका मन तथा उनकी जीभ तैयार नहीं थी। अतः माया भरे शब्दों में उन्होंने कहा, “नहीं गुरुदेव ! उस वक्त मेरे मन में विकार नहीं था। मैंने तो मात्र आपकी परीक्षा करने के लिए ऐसा दिखावा किया था।” दूसरे चाहे कितना भी कहे लेकिन जब तक व्यक्ति खुद के पापों को खुद स्वीकार नहीं करता है तब तक उन्हें गुरुभगवंत भी नहीं तार सकते। यह सोचकर आचार्य भगवंत ने भवितव्यता पर छोड़ दिया।
परिणाम? इतनी भव्य साधना-आराधना करने वाली आत्मा को भी एक लाख भव तक भटकना पड़ा। अतः कोई भी बात गुरु के आगे कभी भी न छिपाकर शुद्ध आलोचना लेनी चाहिए।
श्री अर्जुनमाली मगध सम्राट महाराजा श्रेणिक की राजधानी राजगृही नगरी के बाहर एक रमणीय उद्यान था। उसमें मुद्गरयक्ष का एक मंदिर था। उस यक्ष का परम भक्त था - 'अर्जुनमाली'। वह नित्य अपनी पत्नी बंधुमति के साथ उस यक्ष की पूजा करता था।
एक दिन दोनों पूजा करके आ रहे थे, तब वहाँ खड़े छ: कामांध पुरुषों की नज़र बंधुमति पर पड़ी। नज़र पड़ते ही उनकी कामवासना जागृत हो गई और वे बंधुमति की तरफ गये। अर्जुनमाली एक