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________________ 9. झांझण सेठ झांझण सेठ महान साधर्मिक भक्त सेठ पेथड़ शाह के पुत्र थे। 'बाप से बेटा सवाया' इस बात को चरित्रार्थ करनेवाली उनके जीवन की यह घटना है। झांझण सेठ ने कर्णावती (अहमदाबाद) से छ:रि पालित संघ निकाला। उस समय संघ में ढाई लाख यात्रालु थे। उस समय कर्णावती में सारंगदेव राजा राज्य करते थे। उन्होंने झांझण सेठ से कहा कि “तुम्हारे संघ में जितने भी सुखी यात्रालु है, उनको मैं भोजन के लिए आमंत्रण देता हूँ। उन्हें तुम मेरे यहाँ भोजन के लिए भेजो।" सेठ ने कहा "मेरे संघ में सुखी-दुःखी का कोई भेद ही नहीं है। मेरे लिए सारे यात्रालु एक समान है।" तब राजा ने कहा “ठीक है तुम तुम्हारे संघ के मुख्य 2-3 हज़ार लोगों को भोजन के लिए ले आना।” तब सेठ ने प्रत्युत्तर में कहा “मैं यह भी नहीं कर सकता क्योंकि मेरे लिए सब एक समान है।” इतना कहकर उन्होंने राजा के निमंत्रण को साभार अस्वीकार कर दिया तथा कहा “यदि आपकी आज्ञा हो तो मैं पूरे गुजरात को भोजन करवाना चाहता हूँ।” तब राजा ने हँसते हुए कहा कि “मेरे जैसा राजा ढाई लाख यात्रालु को भोजन नहीं करा सकता और तुम पूरे गुजरात को भोजन करवाने की बात कर रहे हो। ठीक है, मैं तुम्हारा आमंत्रण स्वीकार करता हूँ।” संघ-कार्य पूरा होने के पश्चात् पूरे गुजरात को भोजन करवाने का तय हुआ। राजा ने झांझण सेठ को नीचा दिखाने के लिए जोर-शोर से पूरे गुजरात में इस आमंत्रण का प्रचार किया ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग आए। झांझण सेठ ने भी “सेर पर सवा सेर" बनकर एक दिन नहीं अपितु पूरे 5 दिन तक पूरे गुजरात को भोजन करवाया। 5 दिन के बाद झांझण सेठ ने राजा को स्वयं के रसोई घर में आने के लिए आमंत्रण दिया। रसोई घर में मिठाईयों के ढेर देखकर सारंगदेव राजा आश्चर्य चकित हो गये। विराटकाय वाले राक्षस का पेट भर सके उतनी मिठाईयाँ 5. दिन के बाद भी बची थी। अद्भूत एवं अकल्पनीय भक्ति द्वारा झांझण सेठ ने साधर्मिक भक्ति का लाभ लिया। 10. सांतनु और जिनदास भगवान महावीर स्वामी के समय में सांतनु नामक पुण्यशाली श्रावक था। उसकी पत्नी का नाम कुंजीदेवी था। उसी नगर में जिनदास नामक सेठ थे। सांतनु और जिनदास दोनों संघ के अग्रगण्य थे। सांतनु के दुष्कर्मों के उदय से लक्ष्मी ने चारों तरफ से अपना मुँह फेर दिया। उन्हें धंधे में बहुत बड़ा नुकसान हुआ। यहाँ तक की खाने-पीने के लिए एक दाना भी नसीब में न रहा। एक बार रात्री में
SR No.002439
Book TitleJainism Course Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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