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________________ सीमंधर स्वामी स्तवन (राग :- सिद्धाचलना वासी) प्यारा सीमंधर स्वामी, तमे मुक्तिगामी, विदेह वासी, सीमंधर ने वंदना अमारी, तने जोवा तल| मने प्रीति तुझशुं, विदेहवासी, विहरमान ने वंदना अमारी....||1|| मारा मनमां तारो एक जाप, तोये पजवे छे त्रिविधे ताप, आधि-व्याधि वारो, उपाधी टालो, विदेहवासी....।।2।। मने समवसरणे बोलावो, मीठी मधुरी वाणी सुणावो, मोह तिमिर बले, मिथ्यात्व टले विदेहवासी ....।।3।। थाय दरिसन तुमारा पवित्र, तमे जगना गुरु जगमित्र, तमे जगना बंधु, तमने भावे वंदूं, विदेहवासी....।।4।। तमे श्रेयांस राय कुलचंद, सती सत्यकी माता ना नंद, तमे जग मन रंजन, आज ज्ञान अंजन, विदेहवासी....।।5।। महाविदेह वासी प्यारो, हुं तो अंतरथी थयो कालोवालो, ज्ञानविमल गुणधारो, आ भव पार उतारो, विदेहवासी....।।6।। की श@जय का स्तवन (राग : जिंदगी प्यार का गीत है ...) डुगर ठंडो ने डुंगर शीतडो, ए गिरि सिध्या साधु अनंत, डुंगर पोलो ने डुंगर फुटडो, ज्यां वसे छे सुनंदानो कंत....।।1।। पहले आरे श्री पुंडरीकगिरि, ऐंशी योजन, परिमाण, बीजे आरे सीतेर योजन जाणिये, त्रीजे साठ जोजन नुं मान....।।2।। चोथे आरे पचास योजन जाणीए, पाँचमे बार योजन, मान, छठे आरे सात हाथ जाणीए, ओणी पेरे बोले श्री वर्धमान...।।3।। ओ गिरि ऋषभ जिणंद समोसर्या, पूर्व नव्वाणु वारी वार, यात्रा नव्वाणु जे जुगते करे, धन धन तेहनो अवतार....।।4।। जे नर शत्रुजय भेट्या सही, जे नर पूज्या सही आदि जिणंद, दान सुपात्र जेणे दीधा सही, ते फरी न आवे गर्भावास....।।5।। जे नर शत्रुजय भेट्या नहीं, जे नर पूज्या नहीं आदि जिणंद दान सुपात्र जेणे दीधा नहीं, तेना नवी छूटे कर्म ना बंध...।।6।। डुंगर निरखी डुंगर जे चढ़े, डुंगर फरसे सो-सो वार, मुक्ति सामा जे पगला भरे, तेना नवी थाय कर्मना बंध....।।7।। उदयरत्न कहे अवसर पामी ने, यात्रा करशे जे नर नार, श्री शत्रुजय महात्म्य मां कडं, तस घर होंशे मंगल माल....।।8।।
SR No.002439
Book TitleJainism Course Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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