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की पार्श्वनाथ जिन स्तवन
(राग : याद आवे मोरी माँ....) भवजल पार उतार (२), श्री शंखेश्वर पार्श्वजिनेश्वर मारो तुं एक आधार....।।1।।
काल अनंतो भमता-भमता, क्यांय न आव्यो आरो, धन्य घडी ते मारी आजे, दीठो तुम देदार ....||2||
तुं वीतरागी, तुं अविनाशी, तुं निराबाधी नाथ,
हं रागी छु पापी जीवडो, भमतो भव अपार....।।3।। आम दुनियामां तारा जेवो, कोई न तारणहार, वामा नंदन-चंदन थी, पण शीतल जेनी छाँव....।।4।।
भवोभव तुम चरण सेवा, मांगु छु दीनदयाल,
रंगविजय कहे प्रेमशं रे, विनंती अवधार....।।5।। की मुंदटी तपनी सम्झाय
(राग : फूल तुम्हें भेजा है खत में ...) सरस्वती स्वामीनी करुं सुपसाय सुंदरी तप नी भणुं सज्झाय ...।।1।। .
ऋषभदेव तणी अंग जात, सुंदरीनी सुनंदा मात,
भविजन भावे ए तप कीजे, मनुष्य जन्मनो ल्हावो लीजे.... ||2|| ऋषभदेव जब दीक्षा लीधी, सुंदरी ने आज्ञा नवि दीधी, भरत जाणे मुझ थाशे नारी, मुझ प्राण थकी ए छे प्यारी....।।3।।
भरतराय जब षट्खंड साध्यो, सुंदरीए तप मांडी आराध्यो,
साठ हज़ार वर्ष लगे सार, आयंबिल तप कीधो निराधार....||4|| चौद रतन ने नव निधान, लाख चौराशी हाथीनु मान, लाख चौराशी जेह ने बाजी, भरत राय आव्या गाजी ....।।5।।
__भरतराय मोटा नरदेव, दोय सहस यक्ष करे सेव,
अयोध्या नयरीये भरतजी आव्या, महीला सर्वे मोतीडे वधाव्या....।।6।। आ कुण दीसे दुर्बल नारी, सहु कहे सुंदरी बेन तमारी, केम तुमे एने दुर्बल कीधी, मुज बेनडीनी खबर न लीधी...।।7।।
सहु कहे आयंबिल तप कीधो, साठ हज़ार वर्ष प्रसिद्धो,
जाओ बेनी तुम दीक्षा पालो, ऋषभदेवतुं कुल अजवालो....।।8।। भरतरायनी पामी शिक्षा, सुंदरीए तव लीधी दीक्षा, कर्म खपावी ने केवल पामी, कांति विजय प्रणमे शिरनामी....।।9।।