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________________ का पार्श्वनाथ जिन दैत्यवंदन । जय चिंतामणि पार्श्वनाथ, जय त्रिभुवन स्वामी, अष्ट कर्म रिपु जीतीने, पंचमी गति पामी....||1|| __ प्रभु नामे आनंद कंद, सुख संपत्ति लहिए, प्रभु नामे भव भयतणा, पातक सवि दहिए ...।।2।। ॐ हीं वर्ण जोडी करी, जपीए जिनवर नाम, विष अमृत थई परिणमे, लहिए अविचल ठाम...।।3।। का सीमंधर स्वामी स्तुति पूर्वदिशि उत्तरदिशि वचमां, इशान खूणे अभिरामजी, पुक्खलवई विजये पुंडरिकगिरि, नगरी उत्तम ठामजी। श्री सीमंधर जिन संप्रति केवली, विचरंता जय जयकारजी बीज तणे दिन चंद्रने विनवू, वंदना कहेजो अमारीजी...।।1।। जंबूद्वीपमां चार जिनेश्वर, धातकी खंडे आठजी, पुष्कर अरधे आठ मनोहर, एहवो सिद्धांते पाठजी। पंच महाविदेहे थईने, विहरमान जिन वीशजी, जे आराधे बीज तप साधे, तस मन हुई जगीशजी...।।2।। समवसरणे बेसीने वखाणी, सुणी इन्द्र-इन्द्राणीजी, श्री सीमंधर जिन प्रमुखनी वाणी, मुझ मन श्रवणे सुहाणीजी। जे नरनारी समकितधारी, ए वाणी चित्त धरशेजी, बीज तणो महिमा सांभळता, केवल कमला वरशेजी...।।3।। विहरमान जिन सेवाकारी, शासन देवी सारीजी, सकल संघने आनंदकारी, वांछित फल दातारीजी। बीज तणो तप जे नर करशे, तेहनी तु रखवालीजी, वीरसागर कहे सरस्वती माता, दीओ मुज वाणी ओसालीजी....।।4।। शबुनय स्तुति । श्री सिद्धाचल आदिजिन आव्या, पूर्व नव्वाणु वारजी, अनंतलाभ तिहाँ जिनवर जाणी, समवसर्या निरधारजी। विमलगिरि नो महिमा मोटो, सिद्धाचल ए ठामजी, कांकरे कांकरे अनंत सिद्धा, एकसो ने आठ गिरिनामजी....||1||
SR No.002439
Book TitleJainism Course Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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