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जिनराज मेरे दिल वसिया,अरि फोज करम दल खसीयाँ,
सूरि राजेन्द्र शिवपद रसीया....।।6।। जिनेश्वर भेटिये2 मैं तो बुद्धि रहित गुणहिनो, प्रभु चरण सुधारस पीनो, तुम प्रमोद रुचि पद लीनो...।।7।। जिनेश्वर भेटिये२
समकित मूचक मझाय
(राग : प्रभु पार्श्वनुं मुखडं जोवा) समकित विना हो भाई, जीव रुले गति चउमांहि, इम कहे जिनेश्वर वाणी, भवि जीवदया दिल आणीजी, विन समकित तरो न भाई, जीव रुले गति चउमांहि।।1।। समकित विना...
तप जप क्रिया सहु फोक, इम भाषे सद्गुरु लोक,
तुम शंका करो न कांई, जीव रुले गति चउमाहि।।2।। समकित विना... बहु जीवदया नित्य पाली, विण सरधा गई सहु खाली, तमे तजो कुगुरु संग भाई, जीव रुले गति चउमाहि।।3।। समकित विना...
ब्रह्मचर्य भली विध पाल्यो, वली दोष झूठ पिण टाल्यो,
नवि आतम करणी पाई, जीव रुले गति चउमाहि।।4।। समकित विना... परिग्रहनी ममता मोडी, धर्या लिंग अनंत कोडी, पिण गरज सरी नहीं कांई, जीव रुले गति चउमांहि।।5।। समकित विना...
त्रण काल करी जिनपूजा, तिहां भाव थया नहीं दूजा,
पिण सरधा सांची न जाई, जीव रुले गति चउमाहि।।6।। समकित विना... भण्यो गण्यो सहु धूल, जिम जाणे पलासनो फूल, एह वातमां सूत्र सखाई, जीव रुले गति चउमाहि।।7।। समकित विना...
इम सूरिराजेन्द्र प्रकाशे, भवि समकित भजो उल्लासे, जिम होवे सिद्ध सगाई, जीव रुले गति चउमाहि।।8।। समकित विना...
चार शुई का काव्य विभावर
नोट : चार थुई वाले इस काव्य विभाग को कंठस्थ करें और इसके साथ प्रभु सन्मुख बोलने की तीन स्तुति पेज नं. 73 से याद करें।