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उपलब्ध हैं । इनमें हरिवंश में उत्पन्न श्रेष्ठ पुरुषों का चरित-वर्णन है । हरिवंश में उत्पन्न होने के कारण कृष्ण” इन कृतियों में प्रमुखता से स्थान पा सके हैं । जैन साहित्य में उनका सम्पूर्ण तथा विस्तृत चरित-वर्णन इन्हीं कृतियों में उपलब्ध है । कृष्ण के अतिरिक्त इन कृतियों में अरिष्टनेमि, प्रद्युम्न, वसुदेव आदि अन्य विशिष्ट यादव पुरुषों का विस्तार से वर्णन हुआ है। - कृष्ण-चरित से संबंधित द्वितीय श्रेणी की वे कृतियाँ हैं जो अरिष्टनेमि, वसुदेव, गजसुकुमाल, प्रद्युम्न, बलराम तथा पाण्डवगण से संबंधित हैं और उनमें प्रसंगानुसार कृष्ण-चरित का वर्णन हुआ है । इन कृतियों की आधिकारिक विषयवस्तु यद्यपि संबंधित विशिष्ट पुरुष का चरित-वर्णन है तथापि कृष्ण-चरित का वर्णन इनमें अपरिहार्य रूप से हुआ है । क्योंकि द्वारका के राजा तथा यादवों के श्रेष्ठ पुरुष कृष्ण के वर्णन के बिना इनका चरित-वर्णन अधूरा ही रहता । कृष्ण इनसे घनिष्ठ रूप में संबंधित हैं । ये सब कृष्ण के परिवार-जन हैं और इनके जीवन के अनेक प्रसंग कृष्ण के साथ अभिन्न रूप से जुड़े हुए हैं।
हिन्दी जैन-साहित्य अपनी पूर्ववर्ती परम्परा से भिन्न नहीं है । कृति विशेष का नामकरण, उसकी कथावस्तु, प्रसंग वर्णन का स्वरूप तथा कृति के भाव-पक्ष की दृष्टि से भी हिन्दी जैन-साहित्यकार परंपरा-पोषक है ।
श्रीकृष्ण के स्वरूप का सर्वाधिक विस्तृत चित्रण हमें जैन धर्म के हरिवंश पुराण में मिलता है । उनके चरित्र का परोक्ष चित्रण गजसुकुमाल, प्रद्युम्न, नेमिनाथ, बलभद्र और पाण्डवों से संबंधित ग्रन्थों तथा उत्तरपुराण में मिलता है । हिन्दी में दो जैन हरिवंश पुराण रचे गये हैं । इन दोनों ही कृतियों में श्रीकृष्ण के स्वरूप का वर्णन लगभग एक-सा हुआ है । इन दोनों ही कवियों ने आचार्य जिनसेन के हरिवंशपुराण को ही आधारभूत ग्रन्थ के रूप में स्वीकार कर इन ग्रन्थों की रचना की है । इस तथ्य का परिचय हमें कृष्ण के बाल-स्वरूप के चित्रण को देखने से मिलता है ।
आचार्य जिनसेन से पहले जैन साहित्य में श्रीकृष्ण की महत्ता दो स्वरूपों में ही प्रस्तुत की हुई मिलती है । एक शलाकापुरुष के रूप में तथा दूसरे आध्यात्मिक पुरुष के रूप में।
आचार्य जिनसेन ने सर्व प्रथम शायद वैष्णवों के पौराणिक साहित्य से १- (अ) हरिवंश पुराण-लेखक शालिवाहन ।
(ब) हरिवंश पुराण-लेखक खुशालचन्द काला ।
72 • हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास