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ही उन्होंने कोरे भाग्यवाद को निरसित कर पुरुषार्थवाद का महत्त्व स्थापित किया ।
संक्षेप में हम कह सकते हैं कि कृष्ण के जीवन से संबंधित घटनाओं का अध्ययन करने पर कृष्ण एक शलाकापुरुष, कुशल राजनीतिक नेता, अनुभवी मित्र तथा सर्वोच्च जीवनद्रष्टा तथा एक धर्मपरायण के रूप में हमारे सामने आते हैं । उनके स्वरूप में चरम सौन्दर्य, चरम प्रतिभा, अकल्पनीय लीला, एवं असीम शक्ति विद्यमान मिलते हैं। उनके जीवन की लीलाएँ ऐसी हैं कि उनसे मन, बुद्धि और हृदय तीनों को ही अपनी अपनी प्रवृत्ति के अनुसार आनन्द प्राप्त होता है ।।
70 • हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप - विकास