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________________ महाभारत के अनुसार जरासंध वध कौरवों और पाण्डवों के युद्ध से पहले हुआ । कौरव-पाण्डवों के युद्ध के समय जरासंघ विद्यमान नहीं था। निष्कर्ष निष्कर्षतः हम कह सकते हैं कि जैन कथा के नायक कृष्ण न तो कोई दिव्य पुरुष थे, न तो ईश्वर के अवतार या स्वयं भगवान । वे मानव ही थे । ईश्वर की तमाम उदात्त एक उत्कट शक्तियाँ भी मानवजीवन में ही अपनी सम्पूर्ण भव्यता के साथ प्रस्फुरित होती हैं ॥ तब विश्वाउसके समक्ष विस्मयानन्द विमुग्ध होकर नतमस्तक हो जाता है । श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व इसी बात का उत्तम उदाहरण हैं । शलाकापुरुष बासुदेव के रूप में कृष्ण महान वीर व शक्तिसम्पन्न राजा के रूप में के द्वारका सहित आधे दक्षिण भस्तक्षेत्र के प्रभावशाली अधिपति हैं । उनके जीवन से संबंधित प्रमुख घटनाएँ प्रमाणित करती हैं कि वे महाम शक्ति वा वैभव से युक्त हैं । समान शक्तिशाली मगध के सजा जरासंध को युद्ध भूमि में पसभूत करके वे भारत के नरेशों में प्रथम पूजा व वन्दना के अधिपति हुए । उनके चरित्र की विलक्षणता इसी से प्रतीत होती हैं कि शक्तिसम्पन्न होते हुए भी श्रीकृष्ण अहिंसा के पुजारी हैं तथाः जहाँ तक हो सकता है वहाँ तक युद्ध तथा हिंसा से दूर रहते हैं । यहाँ तक कि आततायी जरासंध तथा शिशपाल को भी प्रायश्चित्त के अनेक अवसर प्रदान किये । कृष्ण वासुदेव अपने समय के आध्यात्मिक पुरुष तीर्थंकर अरिष्टनेमि के प्रति श्रद्धा भाव रखनेवाले नरेश के रूप में जैन-साहित्य में वर्णित हुए हैं। उनके जीवन की घटनाएँ उनके चरित्र के विभिन्न स्वरूपों को उद्घाटित करती हैं। एक अकल्पनीय गति और अप्रतिहत प्रवाह से कृष्ण ने अपने समय की गतिविधियों को संचालित किया था । उस समय बड़े-बड़े अत्याचारी कंस, जरासंध, शिशुपाल, दुर्योधन, जैसे दुर्धर्ष और दुर्दमनीय योद्धा विभिन्न क्षेत्रों पर अपना आतंक जमाए थे, कृष्णने अपनी असीमित शक्ति और बुद्धिकौशल के बल पर सभी को परास्त कर दिया । उनका रूप मानव-जीवन को उदात्त चिन्तन और साहसपूर्ण कर्तव्य की प्रेरणा देता है। वे कर्मयोगी थे,-निष्काम कर्मयोगी । उन्हों ने अपने जीवन में सतत निष्काम कर्म को अपनाया और वही उनका जीवन-सन्देश बन गया ।. अकर्मण्यता और आलस्य को उन्होंने कभी प्रश्रय नहीं दिया । इसके साथ हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास • 69
SR No.002435
Book TitleHindi Jain Sahitya Me Krishna Ka Swarup Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshva Prakashan
Publication Year1992
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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