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वह चक्र छोड़ा । चक्र ने जाकर जरासंध का मस्तिष्क छेदन कर दिया । श्रीकृष्ण का सर्वत्र जय-जयकार होने लगा। महाभारत में जरासंध-युद्ध वर्णनः
जैन साहित्य में जैसा जरासंध-युद्ध का वर्णन मिलता है, वैसा महाभारत में नहीं है । वह बिलकुल ही पृथक ढंगका है । वह वर्णन इस प्रकार है -
महाभारत के अनुसार भी जरासंध एक महान् पराक्रमी सम्राट था । उसका एकछत्र साम्राज्य था । जब कृष्ण ने कंस को मार डाला और जरासंध की कन्या विधवा हो गई तब श्रीकृष्ण के साथ जरासंध की शत्रुता हो गई । जरासंध ने वैर का बदला लेने के लिए अपनी राजधानी से ही एक बड़ी भारी गदा निन्यानवे बार घुमाकर जोर से फेंकी । वह गदा निन्यानवे योजन दूर मथुरा के पास गिरी । उस समय श्रीकृष्ण मथुरा में ही थे । पर वह गदा उनकी कुछ भी हानि न कर सकी।
जरासंध के हंस और डिम्मक नामक सेनापति बड़े बहादुर थे, अतः यादवों ने उनके साथ युद्ध करना अच्छा नहीं समझा । जब वे यमुना में डूबकर मर गये तब श्रीकृष्ण ने विचार किया कि जरासंध को युद्ध में मारना कठिन ही नहीं, कठिनतर है । अतः उसे द्वन्द्व युद्ध में ही हराया व मारा जाय । इसलिए श्रीकृष्ण, भीमसेन व अर्जुन के साथ ब्राह्मणों के वेश में मगध की ओर चल दिये । वे जरासंध के वहाँ पहुँचे । उन्हें देखते ही जरासंध आसन से उठकर खड़ा हुआ । उनका आदर-सत्कार कर कुशल प्रश्न पूछे । भीमसेन और अर्जुन मौन रहे । बुद्धिमान श्रीकृष्णने कहा- राजन् ! ये इस समय मौनी हैं, इसी लिए नहीं बोलेंगे । आधी रात्रि के पश्चात् ये आपसे बातचीत करेंगे।
तीनों वीरों को यज्ञशाला में ठहराकर जरासंध अपने रनवास में चला १- (क) त्रिषष्टि० ८/७/४५३-४५७ ।
(ख) हरिवंशपुराणं ५२४८३-८४, पृ० ६०२ (ग) मन में व्यौम धर्यो । अति धीर चक्र फिराय चलायौ जवै। जाय चक्र उर भेद्यौ तवै॥
__ - ८४६ - हरिवंशपुराणः खुशालचन्द्र काला-पृ० १९० २- महाभारत सभापर्व-अ० १९, श्लोक १९-२५ । । ३-वही, श्लोक २७-२८ । ४-वही, अध्याय-२०, श्लोक १-२ । ५- महाभारतः सभापर्व-अ० २१, श्लोक ३०-३४ ।
66 • हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास