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गया । अर्धरात्रि के व्यतीत हो जाने पर वह फिर उनके पास आया । उनके अपूर्व वेश को देखकर जरासंध को आश्चर्य हुआ । ब्रह्मचारियों की वेशभूषा से विरुद्ध तीनों की वेशभूषा को देखकर जरासंध ने कहा- हे स्नातक ब्राह्मणो ! मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि स्नातक व्रतधारी ब्राह्मण गृहस्थाश्रम में जाने से पहले न तो कभी माला पहनते हैं और न चन्दन आदि लगाते हैं। तुम अपने को ब्राह्मण बता चुके हो, पर मुझे तुम में क्षत्रियो के भाव दीख पड़ते हैं । तुम्हारे चेहरे पर क्षत्रियों का तेज साफ झलक रहा है । सत्य कहो तुम कौन हो ?”
श्रीकृष्ण ने अपना परिचय दिया और साथ ही भीम व अर्जुन का भी । अपने आने का प्रयोजन बतलाते हुए उन्होंने कहा - "तुमने बलपूर्वक बहुत से राजाओं को हराकर बलिदान की इच्छा से अपने यहाँ कैद कर रखा है । ऐसा अति कुटिल दोष करके भी तुम अपने को निर्दोष समझ रहे हो । कौन पुरुष बिना किसी अपराध के अपने सजातीय भाइयों की हत्या करना चाहेगा ? फिर तुम तो नृपति हो ! क्या समझकर उन राजाओं को पकड़कर महादेव के आगे उनका बलिदान करना चाहते हो ? हम लोग धर्मका आचरण करने वाले और धर्म की रक्षा करने में समर्थ हैं । इस कारण यदि हम तुम्हारे इस क्रूर कार्य में हस्तक्षेप न करें तो हमें भी तुम्हारे किए पाप का भागी बनना पड़ेगा । हमने कभी और कहीं मनुष्य बलि होते नहीं देखी है, न सुनी ही । फिर तुम मनुष्यों के बलिदान से क्यों देवता को सन्तुष्ट करना चाहते हो ? हे जरासंध ! तुम क्षत्रिय होकर पशुओं की जगह क्षत्रियों की बलि देना चाहते हो ! तुम्हारे सिवाय कौन मूढ़ ऐसा करने का विचार करेगा ? तुम्हें उन कर्मों का फल अवश्य भोगना पड़ेगा । तुम अपनी जाति का विनाश करते हो और हम लोग पीड़ितों की सहायता करते हैं । २
हे मगधराज ! या तो तुम उन राजाओं को छोड़ दो, या फिर हमारे साथ युद्ध करो । "३
जरासंधने कृष्ण से कहा - "जिन राजाओं को में अपने बाहुबल से हरा चुका हूँ उन्हीं को मैंने बलिदान के लिए कैद कर रखा है । हारे हुए राजाओं के अतिरिक्त यहाँ कोई कैद नहीं है । इस पृथ्वी पर ऐसा कौन वीर है, जो मेरे साथ युद्ध कर सके । मैंने जिन राजाओं को कैद कर रखा है उन्हें तुमसे
१ - महाभारत सभापर्व, अ० २१, श्लोक ३५ - ४८ ।
२- महाभारतः सभापर्व, अ० २२, श्लोक ८ से १४ । ३ - वही, श्लोक २६ ।
हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास
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