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________________ हो जाएगा । यद्यपि आप सावध कर्म से विमुख हैं, तथापि लीला बताये बिना इस समय गति नहीं है । यह सुनते ही अरिष्टनेमि ने कोप किये बिना ही पौरंदर नामक शंख बजाया । शंखनाद को सुनते ही यादव सेना स्थिर हो गई और शत्रु सेना क्षोभ को प्राप्त हुई । फिर अरिष्टनेमि के संकेत से मातली सारथी ने उस रथ को युद्ध के मैदान में घुमाया । अरिष्टनेमि ने हजारों बाणों की वृष्टि की । उन बाणों की वृष्टि ने किसी के रथ, किसी के मुकुट, किसी की ध्वजा छेद दी, किन्तु किसी भी शत्रु की शक्ति अरिष्टनेमि के सामने युद्ध करने की नहीं हुई । प्रतिवासुदेव को वासुदेव ही नष्ट करता है, यह एक मर्यादा थी । अतः अरिष्टनेमि ने जरासंध को मारा नहीं । अपितु जरासंध के सैनिक दल को कुछ समय तक रोक दिया । तब तक बलदेव और श्रीकृष्ण स्वस्थ हो गये । यादव सेना भी पुनः लड़ने को तैयार हो गई। जरासंधने पुनः युद्ध के मैदान में आते ही कृष्ण से कहा- अरे कृष्ण ! तू कपटमूर्ति है । आज दिन तक तू कपट से जीवित रहा है, पर आज मैं तुझे छोड़नेवाला नहीं हूँ । तूने कपट से ही कंस को मारा है, कपट से ही कालकुमार को मारा है । तूने अस्त्र-विद्या का तो कभी अभ्यास ही नहीं किया है । पर आज तेरी माया का अन्त लाऊँगा और मेरी पुत्री जीवयशा की प्रतिज्ञा पूर्ण करूँगा ।३ कृष्णने मुस्कुराते हुए कहा-'अरे जरासंध ! तू इस प्रकार वृथा अहंकार के वचन किसलिए बोलता है ? वाक्चातुर्य न दिखाकर शक्ति दिखा । मैं शस्त्रविद्या भले नहीं सीखा तथापि तुम्हारी पुत्री जीवयशा की अग्निप्रवेश की प्रतिज्ञा को मैं अवश्य पूर्ण करुगा।" फिर दोनों युद्ध के मैदान में ऐसे कूदे कि देखने वाले अवाक् रह गये। उनकी आँखे ठगी सी रह गईं । धनुष की टंकार से आकाश गुंजने लगा । पर्वत भी मानो काँपने लगे । जरासंध बाणों की वर्षा करने लगा । पर श्रीकृष्ण उन सभी बाणों को छेदनभेदन करने लगे । जब जरासंध के १- त्रिषष्टि० ८/७/४२०-४२६ । २ प्रतिविष्णुर्विष्णुनैव वध्य इत्यनुपालयत् ।। स्वामी त्रैलोक्यानाथौड्पि जरासंध जघानन ॥ -त्रिषष्टि०८/७/४३२ । ३ तव प्राणैः सहैवाद्य माया पर्यंतयाम्यरे । एकोऽद्य जीवयशसः प्रतिज्ञा पूरयामि च ।। -त्रिषष्टि०८/७/४३८ । 64 • हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास
SR No.002435
Book TitleHindi Jain Sahitya Me Krishna Ka Swarup Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshva Prakashan
Publication Year1992
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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