________________
करने लगा । इस प्रकार अहंकारी, समस्त संसार में फैलने वाले यश से उपलक्षित और अपनी आयु को समर्पण करने वाले उस शिशुपाल ने श्रीकृष्ण के सौ अपराध कर डाले । वह अपने आपको सबसे श्रेष्ठ समझता था । श्रीकृष्ण को भी ललकार कर उनकी लक्ष्मी छीनने का उद्यम करता था। इसी बीच रुक्मिणी का पिता रुक्मिणी को शिशुपाल को देने तैयार हुआ । युद्ध की चाह करने वाले नारद ने जब यह बात सुनी तो उसने श्रीकृष्ण को यह समाचार सुनाया । श्रीकृष्ण ने छह प्रकार की सेना के साथ जाकर उस बलवान शिशुपाल को मारा और रुक्मिणी के साथ विवाह किया ।
त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र आदि के अनुसार, जरासंध के युद्ध के समय शिशुपाल का वध हुआ है, रुक्मिणी के विवाह के समय नहीं ।
महाभारत के अनुसार राजसूय यज्ञ करनेवाले पाण्डवोंने प्रथम श्रीकृष्ण की अर्चना की । श्रीकृष्ण की अर्चना को देखकर शिशुपाल अत्यन्त रुष्ट हुआ और अनर्गल प्रलाप करने लगा । शिशुपाल की उद्दण्डता को देखकर भीम को बहुत ही क्रोध आया । उसके नेत्र लाल हो गए । वह शिशुपाल को मारने दौड़ा। किन्तु भीष्म पितामह ने उसे रोक दिया । शिशुपाल कहने लगा कि आप इसे छोड़ दें, मैं इसे अभी समाप्त कर दूँगा । तब भीष्म पितामह ने शिशुपाल की जन्म कहानी सुनाते हुए कहा- जब यह जन्मा था, तब गधे की तरह चिल्लाने लगा । मातापिता ड्र गये । उसी समय आकाशवाणी हुई कि यह तुम्हारा कुछ भी नुकसान नहीं करेगा, इसकी मृत्यु उससे होगी जिसकी गोद में जाने से इस बालक के दो हाथ और एक आंख गायब हो जायेंगे | यह सूचना सर्वत्र प्रसारित हो गई । एक दिन श्रीकृष्ण अपनी फफी से,. जो शिशुपाल की माता है, मिलने गये । शिशुपाल को ज्योंही श्रीकृष्ण की गोद में बिठाया गया, त्यों ही इसके दो हाथ और एक
आँख गायब हो गये । माता ने श्रीकृष्ण से प्रार्थना की । कृष्ण ने कहातुम्हारा पुत्र मार डालने योग्य अपराध करेगा तो भी मैं तो सौ अपराधों तक क्षमा करूँगा । इसीलिए यह तुम्हें युद्ध के लिए ललकार रहा है । फिर शिशुपाल ने कृष्ण को ललकारा । जब उसके सौ अपराध पूरे हो गये तब श्रीकृष्ण ने क्रोधकर चक्र को छोड़ा, जिससे शिशुपाल का सिर कटकर पृथ्वी
१- त्रिषष्टि ८/७/४००-४०४ । २- अपराधशतं क्षाम्यं मया हनस्य पितृष्वसः । पुत्रस्य ते वधार्हस्य मा त्व शोके मनः कृथाः ॥
-महाभारत, सभापर्व, अ०४३ श्लोक २४ ।
हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास • 59