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उसकी तलवार छीन ली, और बाल पकड़कर पृथ्वी पर पछाड़कर मार दिया । (ड) शिशुपाल वध
गुणभद्राचार्य के उत्तरपुराण तथा खुशालचन्द काला कृत हिन्दी हरिवंशपुराण में शिशुपाल वध की कथा इस प्रकार है ।२ ।
कौशल के राजा भेषज थे । उनकी पत्नी का नाम मादी था। उनके तीन नेत्रवाला शिशुपाल पुत्र हुआ । तीन नेत्रों को निहार कर उन्होंने किसी निमित्त-ज्ञानी से पूछा । निमित्तवेता ने कहा-जिसे देखने से इसका तीसरा नेत्र नष्ट हो जायेगा, यह उसी के द्वारा मारा जाएगा । किसी दिन राजा भेषज, रानी मादी, शिशपाल और अन्य लोग श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए द्वारावती नगरी गये । वहाँ पर श्रीकृष्ण को देखते ही शिशुपाल का तीसरा नेत्र अदृश्य हो गया । यह देख माद्री को निमित्तज्ञानी का कथन स्मरण आया। उसने श्रीकृष्ण से याचना की-पूज्य । मुझे पुत्र भिक्षा दीजिए।
श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया-हे अम्ब 1 जब तक यह सौ अपराध नहीं करेगा तब तक में इसे नहीं मारूँगा । इस प्रकार कृष्ण से वरदान प्राप्त कर मादी अपने नगर को चली गई । शिशपाल का तेज धीरे-धीरे सूर्य की तरह बढने लगा | वह अपने आपको सर्वश्रेष्ठ समझने लगा । सिंह के समान श्रीकृष्ण के उपर भी आक्रमण कर उन्हें अपनी इच्छानुसार चलाने की इच्छा २- मल्ल मुष्टि यम मंदिर गयौ ।।
कंस तबै क्रोधित अति भयौ ॥ आप जुधः करने कू उठौ ॥
क्रिस्न तबै अति ही सो रुठौ ॥१९४ चरन पकरि भायौ हरी ॥
भूपरिपटिकि मारियो अरी ॥ कंस प्राण तजि निदि गति गयौ । इनिके जयजयकार जु भयो ।। १९५
-दोहो नं. १९४-१९५, पृ. ८० । २- हरिवंशपुराणः खुशालचन्द काला-दोहा-७३८ से ७५२, पृ० ११४ । ३- रुग्मिण्यथ पुरः कौसलाख्यया भूपतेः सुतः । । भेषजस्याभवन्भद्रयां शिशुपालस्त्रिलोचनः ।।
-उत्तरपुराण ७१/३४२, पृ० ३९८ ४- उत्तर पुराण ७१/३४३-३४४ । ५- वही, ७१/३४७
झनक जपणार
58 • हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास