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पड़ा । कुछ ही क्षणों में श्रीकृष्ण पुनः तैयार हो गए । उन्होंने चाणूर को फिर से ललकारा । दोनों भुजाओं के बीच में ड़ालकर उसे ऐसा दबाया कि चाणूर को रक्त का वमन होने लगा । आँखे फिर गईं और कुछ ही क्षणों में वह निर्जीव हो गया ।
चाणूर को मरा हुआ देखकर कंस चिल्ला उठा - इन अधम गोप बालकों को मार दो। इनका पोषण करने वाले नन्द को भी समाप्त कर दो । उसका सर्वस्व लूटकर यहाँ ले आओ और जो नन्द का पक्ष लें उन्हें भी मार डालो
कंस की यह बातें सुनते ही श्रीकृष्ण के नेत्र क्रोध से लाल सूर्ख हो गये । उनके रोम-रोम में से आग बरसने लगी । वे बोले अरे नराधम । चाणूर मर गया तथापि तू अपने आपको मरा हुआ नहीं समझता है ? मुझे मारने से पहले तू अपने प्राणों की रक्षा कर । इतना कहकर और सिंह की तरह उछलकर श्रीकृष्ण मंच पर चढ़ गए । केशों को पकड़कर उसे जमीन पर पटक दिया । उसका मुकुट भूमि पर गिर पड़ा । कृष्ण बोले - अरे दुष्ट ! तूने अपनी रक्षा के लिए व्यर्थ ही गर्भ - हत्याएँ कीं, पर याद रख अब तू भी बचनेवाला नहीं है ।
उधर बलराम ने मुष्टिक को भी मार डाला था । कंस हताश हो गया
था ।
कंस की रक्षा के लिए अनेक सैनिक हाथों में शस्त्रास्त्र लेकर कृष्ण को मारने के लिए तैयार हुए कि बलराम ने मंच के एक खम्भे को लेकर उन सभी को भगा दिया । उधर श्रीकृष्ण ने कंस के मस्तिष्क पर पैर रखा और उसे मार दिया । जैसे दूध में से मक्खी बाहर निकाल कर फेंक दी जाती है, वैसे ही उसे मण्डप में से बाहर फेंक दिया । ३ हरिवंशपुराण के अनुसार कंस स्वयं तलवार लेकर कृष्ण को मारने आता है तब कृष्णने
१ (क) त्रिषष्टि. ८/५/२९६ -३०० /
(ख) भव- भावना - २४५० - २४६१ ।
(ग) हरिवंशपुराण - खुशालचन्द, दोहा - १८१ - १८४ ।
२- (कं) त्रिषष्टि. ८/५/३०१-३०२/
(ख) भव - भावना - २४६२ - २४६४ /
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३ - कृष्णोऽपि पादं शिरसि न्यस्य कंसं व्यपादयत् । केशैः कृष्ट्वाक्षिपदंगाद्बहिस्तं दार्विवार्णिवः ।।
- त्रिषष्टि. ८/५/३१३०
हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप - विकास
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