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उरःप्रदेश को लपेट लिया । यमुनाद में एक मुहूर्त केशव जलक्रीड़ा करने लगे । विषधर से वेष्टित हुए वे सागर में मन्दराचल की तरह घूमने लगे।"
अपनी श्याम कान्ति से नारायण कालिय को देख न पाये । उनको भ्रान्ति हो गई इससे नाग चीन्हा न गया । इतने में कालिय के फन के मणिगण झलमलाए । इस उद्योत से नाग को अच्छी तरह पहचान लिया । गुणों से कौन भला बन्धन नहीं पाता ? अब सहस्रों संग्रामों के वीर मधुमथन ने पाँच नखों से उज्जवल बनी हुई पाँच अंगुली वाले अपने भुजदण्ड पसारे । मानो वे फणामणि से स्फुरित बड़े भुजंग हों । इनसे उन्होंने कालिय के फणामण्डल को पकड़ लिया । अब कौन-सा हाथ है और कौन-सा सर्प इसका पता नहीं चलता था। पुष्पदंत
चतुर्मुख और स्वयम्भू के स्तर के अपभ्रंश महाकवि पुष्पदंत रचित *महापुराण” (ई० ९५७-९६५) को सन्धि ८१ से ९२ जैन हरिवंश की कथा से संबंधित है । सं.८४ में वासुदेव जन्म का, ८५ में नारायण की बालक्रीड़ा का
और ८६ में कंस एवं चाणूर के संहार का विषय है । पुष्पदन्त के युद्धवर्णन-सामर्थ्य के अच्छे उदाहरण ८८-५ से लेकर १५ तक (कृष्णजरासंध युद्ध) हम पाते हैं। हरिभद्र और धवल
पुष्पदन्त के बाद अपभ्रंश कृष्ण-काव्य की परम्परा में दो और कवि उल्लेखनीय हैं । वे हैं हरिभद्र और धवल । धवल की कृति अभी तो अप्रकाशित है । हस्तिलिखित प्रति के आधार पर यहाँ उसका परिचय दिया जाता है। हरिभद्र
___ हरिभद्र का “नेमिनाहचरिउ (११६० में रचित) अधिक विस्तार का महाकाव्य है । उनसे ६५३ छन्द समग्र कृष्णचरित को-कृष्ण जन्म से लेकर द्वारावतीदहन तक - दिया गया है । शताधिक छन्दों में कृष्णजन्म से कंसवध तक की कथा संक्षेप में दी गई है। धवल
कवि धवल का हरिवंशपुराण" ग्यारहवीं शताब्दी के बाद की रचना है । "हरिवंशपुराण की भाषा में आधुनिकता के चिह्न सुस्पष्ट हैं । उसके कई पदों एवं प्रयोगों में हम आदिकालीन हिन्दी के संकेत पाते हैं।
हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास • 35