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धवलकृत हरिवंश की ५३, ५४ और ५५ इन तीन सन्धियों में कृष्णजन्म से लेकर कंसवध तक की कथा है । कथा के निरूपण में और वर्णनों में बहुत कुछ रुढिका ही अनुसरण है ।
नवजात कृष्ण को नन्द-यशोदा के करों में वसुदेव से सौंपने का प्रसंग इस प्रकार अंकित किया गया है:
नन्द के वचन सुनकर वसुदेव गद्गद् कण्ठ से कहने लगा, - तुम मेरा सर्वोत्तम इष्ट मित्र, स्वजन, सेवक, एवं बान्धव हो । बात यह है कि जो जो दुर्जय, अतुलबल, तेजस्वी, पुत्रों ने मेरे यहाँ जन्म पाया उन सबकी कंस ने मेरे पास से कपटभाव से वचन लेकर हत्या कर दी । तंब इष्टवियोग के दुःख से तंग होकर इस बार मैं तुम्हारा आश्रय ढूँढ़ता आया हूँ।
बारबार नन्द के करों को ग्रहण करते वसुदेव ने कहा- यह मेरा पुत्र तुम्हें अर्पण कर रहा हूँ। अपने पेट के पुत्र की नाईं उसकी देखभाल करना । कंस के भय से उसकी रक्षा करना । कंस ने सभी पुत्रों की हत्या करके बार बार रुलाया है, । देवनियोग हो तो यह बच्चा उबरेगा । यह हमारा इकलौता है, यह जानकर इसको सँभालना । (५३-१४)
५३-१७ में नैमित्तिक बालकृष्ण के असामान्य गणलक्षणों का वर्णन करता है । लोग बधाई देने को आते हैं । यहाँ पर जन्मोत्सव में ग्वालिनों के नृत्य के वर्णन में धवल ने अपनी समसामयिक ग्रामीण वेशभूषा का कुछ संकेत किया है :
कासु वि खवरी उप्परि नेती कासु वि लोई लक्खारती । कासु वि सीसे लिंज धराली कासु वि चुण्णी फुल्लडियाली ।। कासु वि तुंगु मउड सुविसुट्ठउ ओढणु वोडु कह मि मंजिट्ठउ
सव्बहं सीसे स्ते बद्धा रीरी घडिय कडाकडि मुद्दा । “किसी के कंधे पर नेती (नेत्र वस्त्र की साडी) थी तो किसी की लोई कमली (लाल जैसी रक्तवर्ण थी) सिर पर धारदार "लिंज” (नीज) थी तो किसी की चुनरी फलवाली थी । किसी का मौर ऊँचा और दर्शनीय था तो किसी की ओढ़नी और बोड़ (एक प्रकार की कंचुकी) मजीठी थे । सभी के सिर पर लाल (वस्त्र ख्णड) बंधा था और वे पीतल के कड़े कड़ियाँ और मुद्रिका पहने हुई थीं।
नन्द-यशोदा और गोपियों का दुलारा बालकृष्ण भागवतकार से लेकर असंख्य कवियों का काव्य-विषय रहा है, जिसकी पराकाष्ठा हम सूर में देखते हैं।
36 • हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वस्प-विकास