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________________ इसी भाव से संलग्न “सिद्ध हैम" में उद्धत दोहा इस प्रकार है 1 “हरि नच्चाविरं प्रगणइ, विम्हइ पाडिउ लोउ । . एवहिं राह-पओहरहं, जं भावइ तं होउ ।।" “हरि” को अपने घर के प्रांगण में नचाकर राधा ने लोगों को विस्मय में डाल दिया । अब तो राधा के पयोधरों का जो होना हो सो हो ।" हेमचन्द्र के “त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र (८, ५) में किया गया वर्णन इससे तुलनीय है - गोपियों के गीत के साथ बालकृष्ण नृत्य करते थे और बलराम ताल बजाते थे । 1 स्वयम्भू - नवीं शताब्दी के महाकवि स्वयम्भू के दो अपभ्रंश महाकाव्यों में से एक है “हरिवंश पुराण" या "अरिष्टनेमिचिरित्र" - (रिट्ठणेमिचरिउ ) । यह अभी तक उपलब्ध सभी - सम्पूर्ण कृतियों में प्राचीनतम् अपभ्रंश कृष्णकाव्य कहा जा सकता है । अठारह सहस्र श्लोक जितने बृहत् विस्तारयुक्त इस महाकाव्य की ११२ संधियों में से ९९ संधियाँ स्वयम्भू विरचित हैं । शेष का कर्तृत्व स्वयम्भू के पुत्र त्रिभुवन का और पंद्रहवी शताब्दी में हुए यशःकीर्ति भट्टारक का है । हरिवंश के चार काण्ड इस प्रकार हैं- यादव काण्ड (१३ संधि), कुरुकाण्ड (१९ संधि), युद्ध काण्ड (६० संधि), उत्तरकाण्ड (२० संधि) | कृष्ण - जन्म से लेकर द्वारावती-स्थापन तक का वृत्तान्त यादवकाण्ड के चार से लेकर आठ संधि तक चलता है । स्वयम्भू ने कुछ अंशो में जिनसेन वाले कथानक में तो वैदिक-परंपरा वाले कथानक का अनुसरण किया है । कृष्ण-जन्म का प्रंसग स्वयम्भू ने इस प्रकार प्रस्तुत किया है ( संधि ४, कवक १२) । “भाद्रपद शुक्ल द्वादशी के दिन स्वजनों के अभिमान को प्रज्वलित करते हुए असुरविमर्दन जनार्दन का ( मानो कंस के मस्तक - शूल का जन्म हुआ । जो सौ सिंहों के पराक्रम से युक्त और अतुलबल था, जिनका वक्षःस्थल श्रीवत्स से लांछित था, जो शुभ लक्षणों से अलंकृत एवम् एक सौ आठ नामों से युक्त था, और जो अपनी देहप्रभा से आवास को उज्ज्वल करता था, उस मधुमथन को वसुदेवने उठाया । बलदेव ने ऊपर छत्र रखते हुए उसकी बरसात से रक्षा की । नारायण के चरणांगुष्ठ की टक्कर से १- मल्लदेश में मथुरा पहुँचने पर मार्ग में कृष्ण धोबी को लूंट लेता है और सैरन्ध्री से विलेपन बलजोरी से लेकर गोपसखाओं में बाँट देता है- ये दो प्रसंग हिन्दु परम्परा की ही कृष्ण - कथा में प्राप्त होते हैं और ये स्वयम्भू में भी हैं । हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप विकास · 33
SR No.002435
Book TitleHindi Jain Sahitya Me Krishna Ka Swarup Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshva Prakashan
Publication Year1992
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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