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________________ सौमद्वार में द्विविद नाम से प्रसिद्ध बानर-राज रहता था । उसने एक दिन पत्थरों की भारी वर्षा करके कृष्ण को आच्छादित कर दिया । उसने अनेक पराक्रमपूर्ण उपायों से कृष्ण को पकड़ना चाहा, परन्तु इन्हें नहीं पकड़ सका प्राग्जोतिष्पुर में नरकासुर ने कृष्ण को बन्दी बनाने की चेष्टा की परन्तु वह भी सफल न हो सका । कृष्ण ने नरकासुर को मारकर उसके यहाँ बन्दी सहस्रों राज-कन्याओं का उद्धार किया । निर्मोचन में छह हजार बड़े-बड़े असुरों को इन्होंने पाशों में बाँध लिया । वे असुर भी जिन्हें बन्दी नहीं बना सके उन कृष्ण को तुम बलपूर्वक वश में करना चाहते हो ।' भरत श्रेष्ठ, इन्होंने बाल्यावस्था में पूतना का वध किया था, और गोपों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को धारण किया था । अरिष्टासुर, धेनुक, महाबली चाणुर, अश्वराज केशी और कंस भी कृष्ण के हाथ से मारे गए थे । जरासंध, दन्तवक्र, पराक्रमी शिशपाल और बाणासुर भी इन्हीं के हाथ से मारे गए हैं तथा अन्य बहुत से राजाओं का भी इन्होंने संहार किया है । अमित तेजस्वी कृष्ण ने वरुण पर विजय पायी है तथा अग्निदेव को भी निर्मोचने षट् सहस्रा : वाशैर्वद्वा मासुराः । ग्रहीतुं नाशकंक्षचैनं तं त्वं प्रार्थ्यसे बलात् ॥ ४५ अनेन हि हता बाल्ये पूतना शकुनी तथा । गोवर्धनो घारीतश्च गवार्थे भरतर्षभ ।। ४६ १- अरिष्टो धेनुकश्चैव चाणूरश्च महाबलः ।। अश्वराजश्च निहतः कंसश्चारिष्टमाचरन् ।। ४७ जरासंधश्च वक्रश्य शिशुपालश्च वीर्यवान् । • वाणश्च निहत : संखों राजानश्य निषूदिताः ॥ ४८ वरुणो निर्जितो राजा पावकश्चामितौजसा । पारिजातं च हरता जितः साध्ताच्छचीपतिः ।। ४९ एकार्णवे च स्वपता निहतो मधुकैटभो । जन्मान्तरमुपागम्य हयग्रीवस्तथा हतः ।। ५० अये कर्ता न क्रियते कारणं चापि पौरुषे । ____ यद् यदिच्छेईं शौरिस्तत् तत् कुर्यादयत्मतः ।। ५१ . तं न बियति गोविन्द घोरविक्रममच्युतम् । ___ आशी विषमिवं कृद्धं तेजोगशिमनिन्दितम् ॥ ५२ प्रधर्षयन् महाबाहुं कृष्णमविलष्टकारिणम् । पतंगोअग्निमिसद्य सामात्यो न भविष्यति ॥ ५३ महाभारत : उद्योग पर्व ३०/४१-५३ । 9 . हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वस्प-विकास
SR No.002435
Book TitleHindi Jain Sahitya Me Krishna Ka Swarup Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshva Prakashan
Publication Year1992
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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