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पराजित किया है । पारिजातहरण करते समय इन्होंने साक्षात् शचिपति इन्द्र को भी जीता है । इन्होंने एकार्णव के जल में सोते समय मधु और कैटभ नामक दैत्यों को मारा था और दूसरा शरीर धारण करके हयग्रीव नामक राक्षस का भी इन्होंने वध किया था ये ही सबके कर्ता हैं, इनका दूसरा कोई कर्ता नहीं है । सबके पुरुषार्थ के कारण भी ये ही हैं। ये जो भी चाहें वह अनायास ही कर सकते हैं । अपनी महिमा से कभी च्युत न होने वाले इन गोविन्द का पराक्रम भयंकर है । तुम इन्हें अच्छी तरह नहीं जानते । ये क्रोध में भरे हुए विषघर सर्प के समान भयानक हैं । ये सत्पुरुषों द्वारा प्रशंसित एवं तेज की राशी हैं । अनायास ही महान पराक्रम करने वाले महाबाहु कृष्ण का तिरस्कार करने पर तुम अपने मंत्रियों सहित उसी प्रकार नष्ट हो जाओगे, जैसे पतंगा अग्नि में पडकर भस्म हो जाता है।
इस समस्त विवरण में विदुर के माध्यम से कृष्ण की वीरता तथा पराक्रम का ही वर्णन है । कृष्ण की वीरता काल पाकर पूजनीय बनी महाभारत में उनके वीरतापूर्ण कृत्यों के साथ उनकी वासुदेव संज्ञा अभिन्न रूप से जुड़ी हुई है । भीष्म पर्व में ब्रह्माजी द्वारा भगवान विष्णु से की गई प्रार्थना में यह स्पष्ट उल्लेख है कि प्रभो, आप वासुदेव नाम से विख्यात होकर कुछ काल तक मनुष्य लोक में रहें और वहाँ असुरों का वध करें ।
इस उल्लेख के आधार पर यह कहा जा सकता है कि कृष्ण की वासुदेव संज्ञा का सम्बन्ध उनके वीरतापूर्ण कृत्यों तथा पराक्रम से है । कृष्ण के वासुदेव स्वरूप की पूजा मूलतः उनकी वीरता व पराक्रम को पूजा है । भगवान वासुदेव का आविर्भाव ही दुष्टों का दमन कर पृथ्वी का भार उतारने के लिए हुआ था
महाभारत के पश्चात कृष्ण सम्बन्धी जो कथाएँ विभिन्न पुराणों में आई हैं, उनका संक्षिप्त अनुशीलन हम आगे दे रहे हैं। : घ : पुराणों में कृष्ण :
वैदिक साहित्य के पश्चात् विभिन्न अवतारों के चरित्रों के आख्यान पुराण साहित्य में मिलते हैं । पुराणों की संख्या १८ है, उन सब में कृष्ण का वृत्तान्त नहीं है, केवल विष्णु, वायु, श्रीमद्भागवत, कूर्म, वामन, ब्रह्माण्ड, स्कन्द, अग्नि, लिंग, ब्रह्मवैवर्त, गरुड, ब्रह्म तथा पद्मपुराण में है। १- मानुषं लोकमातिष्ठ वासुदेव इति श्रुतः । असुराणां वधार्थाय सम्भवस्य महीतले ॥
महाभारत : भीष्म पर्व
हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास • 10