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सर्वभूतवन्दित, शरणागत को वर देने वाले, शत्रु को अभय देने वाले, धर्मज्ञ, नीतिज्ञ, वेदों के वक्ता, तथा जितेन्द्रय कहे गये हैं। वे धैर्यशाली, पराक्रमी, बुद्धिमान और तेजस्वी हैं।
इस प्रकार कृष्ण लोक के रक्षक, धर्म व नीति के संस्थापक और आदर्श पुरुषोत्तम हैं।
कृष्ण का प्रमुख कृत्य दुष्ट-दलन घोषित करके महाभारत के रचयिता ने कृष्ण की वीरता तथा पराक्रम का ही वर्णन किया है । अपनी बात स्पष्ट करने के लिए हम यहाँ महाभारत उद्योग-पर्व का एक प्रसंग उद्धृत कर रहे हैं । प्रसंग इस प्रकार है
कृष्ण पाण्डवों की ओर से दूत बनकर कौरवसभा में गए इस अवसर पर कृष्ण को कैद करने की योजना दुर्योधन ने बनाई । यह बात विदुर को मालूम पड़ी दुर्योधन की भत्सर्ना करते हुए विदुर ने कृष्ण के पराक्रम, बल तथा वीरता का इस प्रकार वर्णन किया है :-३ १-" वीरो मित्रजन श्लाधी, ज्ञाति-बन्धुजनप्रियः ।
__ क्षमावाश्चानहंवादी, ब्रह्मज्ञो ब्रह्मनायकः । भयहर्ता भयार्तानां, मित्राणां नन्दिवर्धनः ॥
शरण्यं सर्वभूतानां दीनानां पालने रतः । श्रुतवानर्थसम्पन्नः सर्वभूत नमस्कृतः ____समाश्रितानां वरदः शत्रूणामपि धर्मवित् नीतिज्ञो नीतिसम्पन्नो, ब्रह्मवादी जितेन्दियः ।।
महाभारत अनुशासन पर्व, १४७/१९-२० । २- तस्मिन धृतिश्च, वीर्य च प्रज्ञा चौजश्चमाधवे ।
उद्योग पर्व ९५/९। ३- "दुर्योधन निबोधेदं बचनं मम साम्प्रतम् । .
___सौमद्वारे दानवेन्द्रो द्विविदो नाम नामतः । शिलावर्षेण महता अदयामास केशवम् ॥ ४१ ।
ग्रहीतुकामो विक्रम्य सर्वेयलेन माधवम् । ग्रहीतुं नाशकच्चैनं तं त्वं प्रार्थ्यते बलात् ।। ४२
प्राग्ज्योतिष्मतं शौरि नरकः सह दानवैः । ग्रहीतुं नाशक्त तत्र तं त्वं प्रार्थ्यसे बलात् ।। ४३
अनेक युगवर्षायुर्निहत्य नरकं मृष । नीत्वा कन्या सहस्रणि उपयेमे यथाविधि ।। ४४
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हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास • 8