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(१) व्यापकता की दृष्टि से जगत् के निवास रूप एवम् जगत के प्रकाशक सूर्य रूप होने से ।
(२) वृष्णियों से वासुदेव नाम से प्रसिद्ध होने के कारण । २
(३) वासुदेव उपाधिधारी पौणड्रक राजा पुरुषोत्तम तथा करवीरपुर के राजा शृगाल का वध करके अपने एक मात्र वासुदेवत्व को प्रमाणित करने के कारण । ३
डॉ. भण्डारकर मानते है कि - "वासुदेव, नारायण तथा विष्णु के एकीकरण ने वैष्णवधर्म, भागवत धर्म या सात्वत धर्म के लिए एक पुष्ट आधारभूमि तैयार की ।
इसमें कोई सन्देह नहीं कि कृष्ण के ऐतिहासिक व्यक्तित्व को किंचित् अंश में प्रस्तुत करने का सर्व प्रथम प्रयास 'महाभारत' में हुआ है । 'महाभारत' किसी अंश में ऐतिहासिक ग्रन्थ तो हैं ही 'महाभारत' में कृष्ण के व्यक्तित्व की तीन स्थितियाँ तो स्पष्ट हैं । (१) सामान्य मानव, अर्जुन के मित्र और पाण्डवों के हितेच्छु एवम् सलाहकार, (२) लौकिक एवं अलौकिक शक्ति सम्पन्न, (३) परब्रह्म ।
'महाभारत' में कृष्ण नर रूप में अवरित होकर भी नारायण रूप की सभी विशिष्टताओं से युक्त हैं । " नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम् " कहकर महाभारतकार ने उनका अभिनन्दन किया है । उनके दिव्य मानवीय स्वरूप के दर्शन हमें 'महाभारत' में होते हैं ।
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'महाभारत' के कृष्ण का व्यक्तित्व आकर्षक है । इन्द्रनीलमणि के समान उनका श्याम - वर्ण शोभायुक्त था । कमल सद्दस उनके नेत्र थे, सुडौल, मनमोहक उनकी बाह्य छबि थी । अपने अप्रतिम रूप के साथ ही वे अतुल बलसम्पन्न भी थे उनका उत्तम चरित्र सभी प्रकार के श्रेष्ठ गुणों और आदर्शों की खान है । वे महान वीर, मित्रजनों के प्रशंसक, जाति और बन्धु-बान्धवों के प्रेमी, क्षमाशील, अहंकाररहित, ब्राह्मणभक्त, भयातुरों का भय दूर करने वाले, मित्रों का आनन्द बढाने वाले, समस्त प्राणियों को शरण देने वाले, दीन-दुःखियों को पालने में तत्पर, शास्त्रज्ञान - सम्पन्न धनवान,
१ - महाभारत, शान्तिपर्व, अध्याय ३४२, श्लोक २०-२१ ।
२ - 'गीतां - वृष्णीनां वासुदेवोऽस्मि, ० - ३७ ।
३ - हरिवंश पुराणं विष्णु पर्व ४४ / २२- २९ ।
४- हिन्दी कृष्णकाव्य : परम्परा का स्वरूप विकास, पृ. १७ ।
५- दि कल्चरल हेरीटेज ऑफ इन्डिया - डो. राम स्वामी ऐलियोर, वोल्यूम -२ पृ. ८५ ।
7• हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप - विकास