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________________ लीलाओं का वर्णन किया गया है । विन्टर निट्ज ने इसको महाभारत का प्रक्षिप्त अंश माना है । इसका रचनाकाल चौथी शताब्दी है । विन्टर निट्ज ने महाभारत के तीन संस्करण माने हैं, अर्थात् महाभारत तीन बार संपादित हुआ है । प्रथम संस्करण में ८८०० श्लोक हैं । दूसरे संस्करण में २४००० श्लोक हैं और तीसरे संस्करण में १००००० (एक लाख) श्लोक हैं । महाभारत के जिस अंश में कृष्ण का महापुरुष के रूप में चित्रण हुआ है, वह अपेक्षाकृत अधिक प्राचीन है तथा देवता एवम् ब्रजवासी गोपाल कृष्ण के रूप का जो अंश है, वह परवर्ती काल्पनिक एवम् प्रक्षिप्त अंश है । कृष्ण जब पाण्डवों के सलाहकार के रूप में होते हैं तब वे पूर्ण मानव हैं । महाभारत काल में कृष्ण एक ओर जहाँ वीर योद्धा थे, तो दूसरी ओर से वासुदेव, नारायण और ईश्वर के अवतार भी थे । अधिक विद्वानों की यह मान्यता है कि महाभारत काल में कृष्ण में अवतारत्व का आरोप होने लगा था । महाभारत में गोविन्द शब्द मिलता है । उसका अर्थ गोचारण करने वाले कृष्ण नहीं, किन्तु गो अर्थात् पृथ्वी, विद अर्थात् रक्षा करने वाले । यह एक प्रसिद्ध पुराणकथा है कि विष्णु ने वराह अवतार लेकर पृथ्वी की रक्षा की थी । डॉ. भण्डारकर ने गोविन्द शब्द को गो+विंद शब्द से व्युत्पन्न माना है । डॉ. भण्डारकरने केशीनिसूदन को भी कृष्ण का नाम न मानकर इन्द्र का विशेषण माना है । जैसे गोविन्द, गोपाल, कृष्ण जैसे विशेषणों का सम्बन्ध कृष्ण से कर लिया गया, वैसे ही ऋग्वेद में प्रयुक्त गो, वृष्णि, गोप, ब्रज, राधा, रोहिणी इन नामों का कृष्ण के साथ सम्बन्ध न होने पर भी इनको कृष्ण के साथ जोड़ दिया गया है । जिस प्रकार घोर. आंगिरस कृष्ण का सम्बन्ध महाभारत के कृष्ण के साथ जोड दिया गया है, उसी तरह गोविन्द, गोपाल, कृष्ण, गो, गोप, विष्णु, राधा, रोहिणी और अर्जुन शब्दों का सम्बन्ध भी पुराणकाल में कृष्ण के साथ जोड़ दिया गया है । 'महाभारत' में द्वारकावासी कृष्ण के जीवन का वर्णन मिलता है और वह भी बाल एवम् किशोर नहीं, पर समर्थ योद्धा, राजनीतिज्ञ एवम् दार्शनिक के रूप में । कृष्ण के वासुदेव नाम की प्रतिष्ठा महाभारत में तीन रूपों में बताई गई है१- हरिवंश का सांस्कृतिक अध्ययन : आमुख-१२ २- वही३- वही-पृ.४० ४- सूर साहित्य : आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, पृ.२४ । ५ वैष्णविज्म एण्ड शैविज्म : भण्डारकर, पृ. ५१ । ६- वही, पृ.५१ । हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास • 6
SR No.002435
Book TitleHindi Jain Sahitya Me Krishna Ka Swarup Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshva Prakashan
Publication Year1992
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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