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व्यूह रचा कि इन्द्र के लिए उस पर आक्रमण करना कठिन हो गया । पराजय न होने को ही विजय मानकर इन्द्र वहाँ से पीछे हटा या यह कहिए कि इस संकट से वृहस्पति ने उसे बचाया।
___ ऋग्वेद में कृष्ण-इन्द्र के संघर्ष के इस उल्लेख पर विचार करने के साथ ही भागवत पुराण के दशम् स्कन्ध के चौबीसवें और पच्चासवें अध्यायों में वर्णित कृष्ण-इन्द्र के संघर्ष की कथा का भी कोसाम्बी ने उल्लेख किया है । तद्नुसार - नन्दादिक गोपालों ने यज्ञ से इन्द्र को सन्तुष्ट करने का विचार किया, पर कृष्ण को यह बात पसन्द नहीं आई । उसने सादा भोजन करने को बाध्य किया और गोप-गोपियों को लेकर वह गोवर्धन पर्वत की ओर चला गया । इसका यह कार्य इन्द्र को अच्छा नहीं लगा और उसने मूसलाधार वर्षा करके गोकुल का नाश करने का प्रयत्न किया । तब कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत हाथ पर उठा लिया और उसके नीचे गोकुल को आश्रय देकर इन्द्र की कुछ नहीं चलने दी "
श्री कोसाम्बी के अनुसार भागवत की इस दन्तकथा का और ऋग्वेद की उपर्युक्त ऋचाओं का निकट सम्बन्ध होना चाहिए । भागवत की कथा इन्द्र को देवत्व प्राप्त होने के बाद की है, तथापि उसमें कुछ ऐतिहासिक अंश होना चाहिए । इस कथा से, उपर्युक्त ऋचाओं पर विचार करते हुए पढ़ने पर, यह निष्कर्ष मिलता है-इन्द्र ने पराक्रमी कृष्ण पर आक्रमण किया । इन्द्र के पास अश्वारोही होने के कारण उसकी सेना बलवती थी । कृष्ण का बल था गाय, बैल और तेज चलनेवाली सेना । पर कृष्ण ने ऐसा स्थान ढूंढ निकाला कि उसके सामने इन्द्र की कुछ न चली, उसकी अश्वारोही सेना कुछ काम न आ सकी । अन्त में उसे अपनी सेना लेकर लौट जाना पड़ा। ____ पौराणिक-साहित्य में देवेतर (असुर) राजाओं से इन्द्र के संघर्ष की अनेक कथाएँ वर्णित हैं । इससे हम यह अनुमान लगा सकते हैं कि इन्द्र जिस जन(कबीला)का प्रमुख था, वह जैसे-जैसे भारत भूमि पर आगे बढ़ा, उससे पहले बसे हुए जनों से संघर्ष हुआ । ऋग्वेद में जिन पांच प्रमुख जनों (कबीलो) का उल्लेख है, उनमें यदु कबीला भी था ।२ इन्द्र से संघर्ष में इस कबीले के साहसी युवकों का नेतृत्व पराक्रमी कृष्ण ने किया-यह हम ऋग्वेद की उपर उद्धत ऋचाओं से अर्थ ग्रहण कर सकते हैं । अस्तु । जो भी हो, परन्तु इस ऋग्वेदिक उल्लेख से यह स्पष्ट है कि इन्द्र का यह प्रतिस्पर्धी १- भारतीय संस्कृति और अहिंसा-धर्मानन्द कोसाम्बी, हिन्दी अनुवादः पृ.४७-४८ २- प्राचीन भारतीय सभ्यता और संस्कृति-दामोदर धर्मानन्द कोसाम्बी,
(हिन्दी अनुवाद-पृ. १४६)
हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास · 4