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मैत्रेय उपनिषद और कठोपनिषद' में भी बताई गई है।
शतपथ ब्राह्मण में नारायण का भी उल्लेख है । ऋग्वेद में पांचरात्र सत्र का प्रयोजक पुरुष तथा पुरुष-सूक्त का कर्ता भी नारायण को बताया हैं । तैतिरीयारण्यक में नारायण को सर्वगुण-समपन्न कहा है।
श्री धर्मानन्द कोसाम्बी ने ऋग्वेद की तीन ऋचाओं का उदाहरण देकर, यह सिद्ध करने की कोशिश की है कि इन ऋचाओं में जिस कृष्ण का उल्लेख हुआ है, यह महाभारत के श्रीकृष्ण हो सकते हैं ।
कोसाम्बी के इस दृष्टिकोण का विश्लेषण करने से पहले हम यहाँ इन ऋचाओं का अर्थ देना आवश्यक समझते हैं ।
“वह शीघ्रगामी कृष्ण दस हजार सेना के साथ अंशुमती नदी के समीप आया । चारों ओर महाशब्द करने वाले उस कृष्ण के पास इन्द्र आया और सन्धि करने के विचार से उसने कृष्ण से मित्रता की बातचीत आरम्भ की । अपनी सेना से कहा, अंशुमती की तंग घाटी में जंगल में छीपकर बैठे हुए उस दूरगामी और आकाश के समान तेजस्वी कृष्ण को मैं देख रहा हूँ और वीरों, मेरी इच्छा है कि अब तुम उससे युद्ध करो । तदनन्तर उस कृष्ण ने अपनी सेना अंशुमती नदी की घाटी में एकत्र की
और बडा पराक्रम दिखाया चारों ओर से चढाई करने वाली इस देवेतर सेना को इन्द्र ने बृहस्पति की सहायता से पराजित किया (अथवा इन्द्र ने इस सेना के आक्रमण सहन किए ।)
इन्ही ऋचाओं के आधार पर श्री कोसाम्बी ने यह निष्कर्ष व्यक्त किया है कि कृष्ण पर आक्रमण करने के लिए इन्द्र के अपने देश से अंशमती नदी तक पहुँचने पर वहाँ कृष्ण ने ऐसे विकट स्थान पर अपनी सेना का १- कठोपनिषद ३/६ । २- शतपथ ब्राह्मण १३-३-४ । ३- ऋग्वेद १२/६/१, १२/१०/९० । ४- तैतिरीयारण्यक १०/११ । ५ “अव द्रप्सो अंशुमतीमतिष्ठदियानः कृष्णो दशभिः सहस्रो ।
___ आगतमिन्द्रः शच्या धमन्तमपस्नेहितीपणा अधत ॥ द्रप्समपश्यं - विष्णु चरन्तमुपह्वरे नद्यो अंशमत्याः ।
नभो न कृष्णभवतस्थिवांसमिव्यामि वो वृष्णो युध्यताओ । अद्य द्रप्सो अंशुमत्या उपस्थेअधारयत्तत्वं तित्विषाणः विशो अदेवीरम्या चरतीद्धृहस्पतिना युजेन्द्रः ससाहे
ऋग्वेद ३/९६/१३/१५ ।
3 • हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास