________________
ही विशिष्ट व्यक्ति हुए हैं । विशाल अध्ययन से स्पष्ट हो जाता है कि देवकी पुत्र कृष्ण से भिन्न अन्य कृष्ण भी हुए हैं । जिनका अपनी-अपनी विशेषताओं के कारण साहित्य में उल्लेख हुआ हैं । ऋग्वेद संहिता में अनेक बार कृष्ण का नाम आया हैं । कृष्ण सूत्रों के रचयिता भी माने गये हैं । सूत्रों के रचयिता कृष्ण आंगिरस गोत्र के थे।
ऋग्वेद के अष्टम् मण्डल, ७४ वें मंत्र के स्रष्टा ऋषि कृष्ण बतलाये गये हैं । अष्टम् मण्डल के ८५, ८६, ८७ तथा दशम् मण्डल के ४२, ४३, ४४ वें सूत्रों के ऋषि का नाम भी कृष्ण ही है । किन्तु विद्वानों का अभिमत हैं कि ये कृष्ण देवकीपुत्र कृष्ण से भिन्न हैं । कृष्ण ऋषि के नाम पर कार्णायन गोत्र प्रचलित हुआ । विद्वानों का अनुमान है कि इस गोत्र-प्रवर्तक के नाम पर ही वसुदेव के पुत्र का नाम कृष्ण रखा गया है । ऋग्वेद की अन्य दो शाखाओं में अपत्य बालक के रूप में कृष्णिय' शब्द आया है । आंगिरस ऋषि के शिष्य कृष्ण का नाम कौषीतकि ब्राह्मण में मिलता है । ऐतरेय आरण्यक में कृष्ण हरित नाम आया है ।६ कृष्ण नामक एक असुर राजा अपने दस सहस्र सैनिकों के साथ अंशुमती (यमुना) के तटवर्ती प्रदेश में रहता था बृहस्पति की सहायता लेकर इन्द्र ने उसे पराजित किया । ऋग्वेद में इन्द्र को कृष्णासुर की गर्भवती स्त्रियों का वध करने वाला भी कहा है । ऋग्वेद में 'विष्णु शब्द का प्रयोग अनेकार्थ और विपुल है । किन्तु इसकी एक विशेषता यह है । कि वह सर्वत्र एक दिव्य महान् और व्यापक शक्ति का प्रतीक रहा है । विष्णु के विविध रूपों का वर्णन जे.. गोंडा नामक विद्वान ने विस्तारपूर्वक किया है । विष्णु की शक्ति का उत्तरोत्तर विकास ब्राह्मण ग्रन्थों में मिलता है । विष्णु के वैशिष्ट्य की कथाएँ शतपथ ब्राह्मण° और. तैतिरीयारण्यक में मिलती हैं । और उसकी महत्ता १- ब्रज का सांस्कृतिक इतिहास : प्रभुदयाल मित्तल, पृ. १५-१६ । २- वैष्णविज्म-शैविज्म-भण्डारकर, पृ. १५ / ३- हिन्दी साहित्य में राधा : द्वारकाप्रसाद मित्तल, पृ.२८ । ४- वही, पृ. २८ । ५- ऋग्वेद १-११६-२३, १७-७ । ६- कृष्णो हतांगिरसो ब्राह्मणाम् छंसीय तृतीयं सवनं ददर्श -
सांख्यायन ब्राह्मण अ. ३ आनन्दाश्रम पूना । ७- ऐतरेय आरण्यक ३/२/६ । ८- ऋग्वे द १/१०/११ । ९- जे. गोंडा : एक्सपेक्ट ऑफ अरली वैष्णविज्म, पृ.३ । १०- शतपथ १/२/५ / १४-१-१ ।
हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास • 2